लिवर की खामोश चेतावनी को अनसुना करना पड़ सकता है भारी
मेरठ। मानव शरीर का लिवर एक अत्यंत महत्वपूर्ण और परिश्रमी अंग है, जो 500 से अधिक महत्वपूर्ण कार्य करता है – जैसे पाचन, मेटाबॉलिज्म, डिटोक्सिफिकेशन, रोग प्रतिरोधक क्षमता को बनाए रखना, और मिनरल्स को संग्रहित करना। इसके बावजूद, स्वास्थ्य की चर्चाओं में अक्सर इसका उल्लेख नहीं होता। दिल की बीमारियाँ, हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ और किडनी रोग जहाँ आमतौर पर चर्चा में रहते हैं, वहीं लिवर चुपचाप अपने कार्य करता रहता है। लेकिन आज के तेज़ रफ्तार जीवन में बदलती खानपान की आदतें, मोटापा और बढ़ती शराब की खपत लिवर पर गंभीर प्रभाव डाल रही हैं।
आजकल की सबसे सामान्य लिवर संबंधी बीमारी है नॉन-अल्कोहॉलिक फैटी लिवर डिज़ीज (NAFLD), जिसमें शराब के सेवन के बिना ही लिवर में फैट जमा हो जाती है। यह अस्वस्थ भोजन, निष्क्रिय जीवनशैली और मोटापे से जुड़ा होता है। यदि समय रहते इसे न रोका जाए, तो यह नॉन-अल्कोहॉलिक स्टीटोहेपेटाइटिस (NASH) और आगे चलकर सिरोसिस व लिवर फेलियर में बदल सकता है। दूसरी ओर, अत्यधिक शराब के सेवन से अल्कोहॉलिक लिवर डिज़ीज होती है, जो लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाती है और उनमें सूजन व स्कारिंग का कारण बनती है। ये दोनों स्थितियाँ लिवर प्रत्यारोपण की आवश्यकता तक पहुँचा सकती हैं।
मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत के लिवर और बिलियरी साइंसेज विभाग के कंसल्टेंट डॉ. विपुल गौतम ने बताया कि “लाइफस्टाइल के अतिरिक्त, हेपेटाइटिस A, B, C और E जैसी वायरल इंफेक्शन भी लिवर की बीमारियों में प्रमुख भूमिका निभाती हैं। हेपेटाइटिस A और E आमतौर पर दूषित भोजन व पानी से फैलते हैं और तीव्र लिवर संक्रमण का कारण बनते हैं। वहीं हेपेटाइटिस B और C लंबे समय तक लिवर को नुकसान पहुँचा सकते हैं, सिरोसिस और लिवर कैंसर तक पहुँचा सकते हैं यदि इलाज न हो। सौभाग्य से, हेपेटाइटिस A और B के लिए प्रभावी टीके उपलब्ध हैं, फिर भी लोग इन्हें नज़रअंदाज़ कर देते हैं। हेपेटाइटिस B और C के लिए एंटीवायरल दवाएँ भी उपलब्ध हैं, जो समय पर शुरू की जाएँ तो बीमारी की गंभीरता को रोका जा सकता है।“
डॉ. विपुल ने आगे बताया कि “सकारात्मक बात यह है कि अधिकांश लिवर रोगों को जीवनशैली में सरल बदलाव और जनस्वास्थ्य उपायों से रोका जा सकता है। संतुलित भोजन, जिसमें प्रोसेस्ड फूड, शक्कर और सैचुरेटेड फैट्स कम हों, और नियमित व्यायाम फैटी लिवर के जोखिम को कम कर सकते हैं। शराब से परहेज या उसका सीमित सेवन भी लिवर की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। स्वस्थ वजन बनाए रखना, डायबिटीज़ और कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखना, और हेपेटाइटिस A और B का टीकाकरण कराना भी अहम कदम हैं। नियमित स्वास्थ्य जांच और जोखिम वाले व्यक्तियों में हेपेटाइटिस B और C की समय पर स्क्रीनिंग, लिवर को लंबे समय तक स्वस्थ रखने में मदद कर सकती है।“
दुर्भाग्यवश, लिवर की बीमारी अक्सर चुपचाप बढ़ती है और जब तक लक्षण सामने आते हैं, तब तक काफी नुकसान हो चुका होता है। इसलिए जागरूकता और रोकथाम ही सबसे बड़ा उपाय है। यदि लोग लिवर के महत्व को समझें और उसकी देखभाल के लिए समय पर कदम उठाएँ, तो लिवर फेलियर और ट्रांसप्लांट की ज़रूरतों को काफी हद तक टाला जा सकता है।
No comments:
Post a Comment