मशहूर
जो सोचा भी नहीं था अभी तक,
सुन लीजिए क्या होता है सपना और हकीकत,
जैसे ही मैंने राजा बाबू मूवी देखा,
विभिन्न लिबासों में खुद की आंख सेंका,
अब तो मुझे छा गया फितूर,
आ गया जाने कहां से सुरूर,
मशहूरियत के लिए जुगाड़ लगाया,
कुछ जरूरी व्यवस्थाएं जमाया,
सबसे पहले मैंने लच्छेदार भाषण देना सीखा,
एक खास रंग में रंग गया जो नहीं था फीका,
फिर अपने कुछ लोगों को
विरोध प्रदर्शन में लगाया,
जगह जगह भ्रष्टाचार का पुतला जलवाया,
मीडिया के जरिये प्रसिद्धि की आस था,
बिके हुए पत्रकारों को
एकजुट करने का किया प्रयास था,
खुद का बड़ा बड़ा पोस्टर लगवाया,
अपने को निर्माताओं द्वारा प्रोजेक्ट कराया,
अब सारे मेरे ही गुण गा रहे थे,
मुझे सबका भविष्य बता रहे थे,
भावनाओं का दोहन करना
मेरे बांये हाथ का खेल था,
जिसमें तिकड़मी चालों का मेल था,
हो गया अब मैं पूरी तरह मशहूर था,



मिली ताकत के मद से चूर था,
मेरा ही डंका और बजने लगा बाजा था,
अब मैं बन गया राजा था,
नींद खुलते ही मैं बुरी तरह डर गया,
अपना यह रूप देख सिहर गया,
डर से मैंने बार बार मुंह धोया,
बमुश्किल अपने इस विचित्र रूप से
बाहर आ कई घंटे बाद चैन की नींद सोया।
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- राजेन्द्र लाहिरी, पामगढ़ छग।

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