मिथ्या आवरण

ईमान को बेचकर कभी
ईमानदार नहीं बना जाता।
दर्द देकर कभी किसी का
हमदर्द नहीं बना जाता।
इंसान को तोड़कर कभी
इंसानियत का दावेदार
नही बना जाता।
बीच राहों में छोड़कर
हमसफर को कभी
हमराही नहीं बना जाता।
कल-कल कर कभी
पल-पल का जीवंत जीवन
नहीं जिया जाता।
देकर औरों को दुख कभी
खुद के चेहरे पर
खुशियों का झूठा मुखौटा
नहीं पहना जाता।
------------------
- डॉ.राजीव डोगरा
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।


No comments:

Post a Comment

Popular Posts