आखिर शहबाज शरीफ के प्रस्ताव पर कैसे हो विश्वास?
- नीरज कुमार दुबे
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले पर कड़ा रुख अपनाते हुए भारत ने पाकिस्तान पर कई प्रतिबंध लगाये और आतंकवादियों को कल्पना से भी बड़े अंजाम को भुगतने की चेतावनी दी तो शहबाज शरीफ के होश उड़ गये हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि वह करें तो क्या करें। पहलगाम हमले के बाद से उन्होंने जो चुप्पी साध रखी थी उसे तोड़ते हुए उन्होंने कहा है कि हम घटना की जांच में सहयोग करने के लिए तैयार हैं। 

हालांकि देखा जाये तो जांच में मदद करने जैसे आश्वासन या नौटंकी वाले हथकंडे पाकिस्तान पहले भी अपनाता रहा है मगर असल में उसने कभी भी सहयोग नहीं किया। मुंबई हमले के दोषियों के खिलाफ सबूत बार-बार सौंपे जाने के बावजूद उसने कभी भी आतंकवादियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की ना ही पठानकोट हमले के दोषियों को वह न्याय के कठघरे में लाया है। इसलिए पहलगाम हमला मामले में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के बयान पर कतई विश्वास नहीं किया जा सकता।



पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ एक तरफ कह रहे हैं कि पाकिस्तान पहलगाम हमले की किसी भी "निष्पक्ष और पारदर्शी" जांच में भाग लेने के लिए तैयार है। दूसरी ओर उनकी सेना पीओके में आतंकवादियों को प्रशिक्षण से लेकर भारत में घुसपैठ के प्रयासों में मदद देकर अपना जिहाद आगे बढ़ा रही है।



 शहबाज शरीफ एक तरफ कह रहे हैं कि भारत बिना किसी तथ्य के आरोप लगा देता है तो दूसरी ओर लंदन में पाकिस्तानी उच्चायोग के बाहर प्रदर्शन कर रहे भारतीयों की गर्दन काटने का इशारा खुद पाकिस्तानी राजनयिक कर रहे हैं। एक तरफ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री का यह कहना कि हमने आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में 90,000 जानें और 600 अरब डॉलर गंवाए तथा दूसरी ओर पाकिस्तान के रक्षा मंत्री का सार्वजनिक तौर पर यह स्वीकारना कि उनका देश आतंकवाद को मदद देता रहा है, दोहरेपन और मानसिक रूप से दिवालियेपन का अनुपम उदाहरण है।
(इस लेख में लेखक के अपने विचार हैं।)

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