मौसम की अस्थिरता
इलमा अज़ीम
निरंतर उत्पन्न हो रहीं मौसम संबंधी अस्थिरताएं भी मनुष्य को हतप्रभ कर रही हैं। इस बार होली दिवस के संध्याकाल से ही भारत सहित विभिन्न देशों में जलवायु प्रतिकूल होनी आरंभ हो गई। परिणाम में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड की संपूर्ण पर्वतमाला के ऊंचे शिखरों पर हुए हिमपात, वर्षा, आंधी-तूफान द्वारा जलवायु पुन: अस्थिर हो उठी है।
ऐसा परिवर्तन वायुमंडल की वातानुकूलन स्थिति को ध्वस्त कर रहा है। यह दुष्चक्र विगत दस-पंद्रह वर्षों सेे तीव्रता पूर्वक अप्रकट रूप में घूम रहा है। इस पर आधुनिक विज्ञान और वैज्ञानिकों का कोई नियंत्रण नहीं है। यह मनुष्य के अल्पावधि के जीवन को भी केवल और केवल कठिनाइयों, समस्याओं व पीड़ाओं से घेर रहा है। ऐसे में क्या मनुष्य का घर और क्या पक्षी का घोंसला, सभी आश्रय स्थल असुरक्षित थे।
इस प्रतिकूल परिस्थिति में पूरा जीवन ही असुरक्षित हो उठा था। यह पारिस्थितिकी असंतुलन भारत के वायुमंडल तक ही सीमित नहीं था। इसी समयावधि में अमेरिका के मध्य-पश्चिमी व दक्षिणी क्षेत्र के मिसौरी, अर्कांसस, टेक्सास, ओक्लाहोमा, कंसास और मिसिसिपी में भी आंधी-तूफान, वर्षा-हवाओं के कारण 34 लोग मारे गए और 29 घायल हो गए। भारत और अमेरिका ही नहीं, दुनिया के अनेक देशों, भूभागों और इनमें रह रहे लोगों पर 14-15 मार्च का जलवायु उत्पात गहन संकट बनकर छाया।
ऐसा गत पंद्रह वर्षों में कम प्रभाव के साथ, गत दस वर्षों में अधिक प्रभाव के साथ और अब विगत एक-दो वर्षों में अत्यधिक प्रभाव के साथ निरंतर कुछ-कुछ दिनों के अंतराल पर हो ही रहा है। आज के वैज्ञानिकों से लेकर साधारण जन को इस बिंदु पर अवश्य विचार करना चाहिए। संभवत: तब हमारे भीतर प्रकृति के प्रति सम्मान उत्पन्न हो सके और तत्पश्चात हम उसका क्रूर दोहन न कर अपनी भावी पीढ़ी हेतु उसे संरक्षित करने के कृतसंकल्प लें।
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