वर्तमान में लड़ाई विचारों की है हथियारों की नहीं : पदम सिंह

- नेरेटिव बनाने वाले वर्तमान में है परेशान

अपनी संस्कृति पर हमें गर्व करना चाहिए 

मेरठ। वर्तमान समय में लड़ाई विचारों की है हथियारों की नहीं है। अपने विचारों को विजय बनाने के लिए मर्यादा भी तय करनी होगी। किसी को परास्त करना विजय होना नहीं है क्योंकि विजय प्राप्त करने के लिए किसी को समाप्त करना होता है। हमें किसी को मारना नहीं है। आजकल दो चीजें चल रही है नेरेटिव और विमर्श , नेरेटिव बनाने वाले वर्तमान में परेशान हैं। यह बात तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल और मेरठ चलचित्र सोसाइटी के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित नवांकुर फिल्म महोत्सव में मुख्य वक्ता पदम सिंह क्षेत्र प्रचार प्रमुख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कही।

उन्होंने कहा कि हमें तय करना होगा कि बुरा और अच्छा क्या है। फिल्में भावना और संवेदना जोड़ने का काम करती हैं। यह लंबे समय तक हमे प्रभावित करती है। स्व पर, अपनी संस्कृति पर, अपने कुल पर हमे गर्व करना चाहिए। मैं हमेशा समाप्त होता है। सामने वाले को जीवन देना हमारा चिंतन है।यह शब्द बोलने के लिए नहीं जीने के लिए है। उन्होंने कहा कि विचार करना चाहिए कि फिल्मों के माध्यम से सनातन, संस्कृति को समाज तक कैसे पहुंचाया जा सकता है कुंभ से अनेक प्रकार के विषय विचारों को फिल्मों के माध्यम से समाज के बीच को चाहने का कार्य करें संघ सौ वर्ष पूर्ण होने  पर समाज के बीच जाने वाला है यह पांच विषय है परिवार पर्यावरण सामाजिक समानता स्व का जागरण तथा नागरिक तक जिन पांच विषयों पर शॉट फिल्म बनाकर समाज को विचारों से जोड़ने का कार्य करें हमें इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि अपनी फिल्मों में भारत और भारतीयता संस्कृति दिखनी चाहिए मेरा नागरिक कर्तव्य क्या है मुझे पता होना चाहिए सामाजिक पारिवारिक कर्तव्य भी पता होना चाहिए आने वाला समय भारत का है भारत का दर्शन अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज के बीच जाना चाहिए। उन्होंने फिल्म छावा का उदाहरण देते हुए कहा कि इसमें संभाजी महाराज और औरंगजेब के बीच संवाद दिखाया गया है, जिसमें संभाजी स्वराज की परिभाषा बताते हैं। यह हमें सिखाता है कि "हमें अपनी पहचान और विचारधारा को दृढ़ता से स्थापित करना चाहिए। इसी तरह, फिल्मों के माध्यम से हमें यह तय करना चाहिए कि हमारा भारत कैसा दिखे और किस दिशा में आगे बढ़े।

नवापुर फिल्म महोत्सव की विशिष्ट अतिथि अनीता चौधरी ने कहा की फिल्म विचारों का उत्सव होता है समाज को क्या देना चाहते हैं इसका प्रदेश होता है जिनकी फिल्मों का चैन नहीं हुआ है वह निराश ना हो आपने फिल्म बनाई है अपनी सोच को फिल्म में प्रकाशित किया है यह बड़ी बात है 2013 के बाद विचारों में बदलाव आया है क्योंकि फिल्म समाज का दर्पण होती है यही कारण है कि 2013 के बाद समाज में बड़ा बदलाव आया व्यक्तित्व को प्रभावित करने वाली फिल्मों ने समाज पर बड़ा प्रभाव छोड़ा उन्होंने कहा कि क्रिएटिविटी में दो ही प्रकार होते हैं सकारात्मक और नकारात्मक इन दोनों प्रकारों को हमें खुद चुनना होगा भविष्य वर्तमान में आप क्या सुनते हैं उस पर निर्भर होता है फिल्मों का प्रेजेंटेशन समाज को प्रभावित करता है। उन्होंने बताया कि 1897 में भारत में पहली बार अंग्रेजों द्वारा निर्मित फिल्म दिखाई गई थी, लेकिन उस समय सिनेमा हॉल के बाहर लिखा था डॉग्स एंड इंडियंस नॉट अलाउड इसी अपमानजनक व्यवहार ने भारतीय फिल्म निर्माताओं को अपनी फिल्मों का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप, दादा साहेब फाल्के ने 1913 में पहली भारतीय फीचर फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ बनाई। उन्होंने यह भी कहा कि 1967 के बाद से भारतीय सिनेमा में आर्थिक मुद्दों को लेकर जागरूकता बढ़ी, और इसे फिल्मों में भी दिखाया जाने लगा, जैसे कि ‘रोटी, कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में। लेकिन 1980 के दशक के बाद से फिल्मों की गुणवत्ता में गिरावट देखी गई। हमें फिल्में देखने के लिए केवल एक दर्शक बनकर नहीं जाना चाहिए, बल्कि अपना दृष्टिकोण और विचार लेकर जाना चाहिए। यदि हम केवल वही देखते हैं जो फिल्में दिखाना चाहती हैं, तो हम उनके नैरेटिव के शिकार हो सकते हैं। इसलिए, हमें फिल्मों को एक जिम्मेदार दर्शक की तरह देखना चाहिए और अपने विचारों को मजबूत रखना चाहिए। उन्होंने मणिकर्णिका फिल्म का उदाहरण देते हुए कहा कि उसमें न केवल एक महान व्यक्तित्व का चित्रण था, बल्कि उसमें एक दिशा भी थी। आजकल कूल बनने की होड़ है, लेकिन हमें यह समझना होगा कि "कूल बनने का सही मतलब क्या है। हमें केवल ट्रेंड फॉलो नहीं करना चाहिए, बल्कि यह भी सोचना चाहिए कि जो दिखाया जा रहा है, वह कितना सही और कितना गलत है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफ़ेसर संगीता शुक्ला ने कहा कि अवार्ड लेना बड़ी बात नहीं है आपने इसमें भाग लिया यह महत्वपूर्ण बात है फिल्म बनाने के लिए बहुत पढ़ना पड़ता है समाज को देखना और समझना पड़ता है तब जाकर एक फिल्म बनती है और समाज को मैसेज देती है शॉट फिल्म बनाना बहुत कठिन है। कुलपति ने कहा कि युवाओं को पढ़ना चाहिए समाझ को समझना चाहिए समाज अच्छा बने या बुरा बनने यह हमारी जिम्मेदारी है पुरस्कृत फिल्मों को बधाई देते हुए कुलपति प्रोफेसर संगीता शुक्ला ने कहा कि पुरस्कृत फिल्में बनाने वाले आगे जाने चाहिए उनको बड़ा मंच मिले यह हमारी जिम्मेदारी है आज हम विकसित भारत की बात कर रहे हैं उसमें युवाओं को महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाने होगी विकसित भारत में हमारा क्या योगदान हो सकता है ऐसे सोचना होगा युवाओं के पास ज्ञान की कमी नहीं है युवाओं को बेहतर प्लेटफार्म उपलब्ध कराएं यह हमारे ब्रैंड एंबेसडर है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस, साउंड डिजाइनिंग और फिल्म निर्माण से जुड़े पाठ्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए, ताकि मेरठ को एक फिल्म सिटी के रूप में विकसित किया जा सके। उन्होंने कहा कि समय-समय पर ऐसे व्यक्तित्वों को बुलाया जाना चाहिए, जो विकसित भारत की बात करें और युवा पीढ़ी को सही दिशा दिखाएं। तिलक पत्रकारिता एवं जनसंचार स्कूल के निदेशक प्रोफेसर प्रशांत कुमार ने स्वागत भाषण में बताया कि नवांकुर फिल्म फेस्टिवल की यात्रा 2018 में शुरू हुई थी। इस फेस्टिवल का उद्देश्य नवोदित फिल्म निर्माताओं को एक सशक्त मंच प्रदान करना है, जहाँ वे अपनी क्रिएटिविटी को दर्शकों तक पहुँचा सकें। इस पहल को सफल बनाने के लिए चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय और मेरठ चलचित्र सोसाइटी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 

 ये दिखाई गयी फिल्म 

नवांकुर फिल्म महोत्सव में 20 फिल्मों दिखाई गई जिसमें 10 फिल्में 15 मिनट और 10 फिल्में 5 मिनट वाली थी। 

पुरस्कृत फिल्में 15 मिनट 

प्रथम पुरस्कार: हैप्पी दशहरा 

द्वितीय पुरस्कार: गोपाल 

सांत्वना पुरस्कार 

कृष्ण दर्शन, final bet, जल दंश

पुरस्कृत फिल्में 5 मिनट 

प्रथम पुरस्कार : अहिल्याबाई होलकर

द्वितीय पुरस्कार: notice: A Bitter truth, गुड की नगरी मुजफ्फरनगर 

सांत्वना पुरस्कार

शाम तक, तीन रंग, समान

निर्णायक मंडल में सुमंत डोगरा, डॉक्टर दिशा दिनेश, शरद व्यास, अनीता चौधरी, बंशीधर चतुर्वेदी रहे।इस अवसर पर सुरेन्द्र कुमार, डॉक्टर यशवेंद्र वर्मा, वीनस शर्मा, वेदव्रत आर्य, संजीव गर्ग, सुनील सिंह, पंकज शर्मा, डॉक्टर विवेक त्यागी, विश्वमोहन नौटियाल, डॉक्टर मनोज श्रीवास्तव, डॉक्टर दीपिका वर्मा, डॉक्टर बीनम यादव, डॉक्टर मनु कौशिक, सुंदर चंदेल, प्रशासनिक अधिकारी मितेंद्र कुमार गुप्ता, राकेश कुमार, ज्योति वर्मा आदि मौजूद रहे।

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