अंतरिक्ष में मजबूती
इलमा अज़ीम 
'स्पेडेक्स' अभियान को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी में भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता और भविष्य की चुनौतियों का सामना करने के लिए इसरो की क्षमता में तेज विकास के सूचक के तौर पर देखा जा सकता है। पिछले कुछ वर्षों में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानी इसरो ने अंतरिक्ष में जिस स्तर पर उपलब्धियां हासिल की हैं, उससे दुनिया भर में भारत को एक खास पहचान मिली है। अब अपने 'स्पेडेक्स' अभियान के तहत इसरो को उपग्रहों को जोड़ने और फिर अलग-अलग करने में जैसी कामयाबी मिली है, उसने अंतरिक्ष विज्ञान के भविष्य में भारत के लिए नई उम्मीद जगा दी है।
 इसरो ने बताया कि उसने 'स्पेडेक्स' उपग्रहों को 'डी-डाक' यानी अलग करने का काम पूरा कर लिया है। गौरतलब है कि स्पेडेक्स अभियान बीते वर्ष 30 दिसंबर को शुरू किया गया था। उस समय इसरो ने अंतरिक्ष में कई प्रयासों के बाद 16 जनवरी को 'डाकिंग' के तहत दो उपग्रहों एसडीएक्स-01 और एसडीएक्स- 02 को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया था। दरअसल, 'डाकिंग' अंतरिक्ष में दो उपग्रहों को जोड़ने की प्रक्रिया को कहते हैं और इसमें जोखिम और संवेदनशीलता के स्तर को देखते हुए पहले ही प्रयास में इसरो को मिली कामयाबी बेहद महत्वपूर्ण मानी गई है।


इसे एक अविश्वसनीय अभियान को कामयाबी के साथ पूरा करने के तौर पर देखा गया है। अब उसी कड़ी में इसरो ने दोनों उपग्रहों को अलग करने में जिस स्तर का कौशल प्रदर्शित किया है, उससे साफ है कि अब अंतरिक्षीय प्रयोगों में भारत को अहम दर्जा मिल रहा है। गगनयान मिशन के लिए भी यह तकनीक जरूरी है, जिसके तहत मनुष्य को अंतरिक्ष में भेजा जाएगा।


 उपग्रहों को अलग करने में इसरो को मिली ताजा कामयाबी के बाद चंद्रमा की खोज, मानव अंतरिक्ष उड़ान और अपना स्वयं का अंतरिक्ष स्टेशन बनाने जैसे भविष्य के अभियानों का रास्ता साफ हो गया है। दो छोटे अंतरिक्ष यानों का उपयोग कर उन्हें जोड़ना, 'डाकिंग' प्रौद्योगिकी का विकास, लक्षित अंतरिक्ष यान के जीवन काल को बढ़ाने की क्षमता प्रदर्शित करना, यानों के बीच विद्युत शक्ति हस्तांतरण का परीक्षण करना आदि इसरो के इस अभियान के मुख्य लक्ष्यों में शामिल है। 

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