भारतीय संस्कृति में कोई अनेकता नहीं यह तो संपूर्ण भारतवर्ष में एक ही है - सोमदत्त शर्मा
भारतीय भाषाएं, परंपरा व लोक संस्कृति हमारे देश की संस्कृति का संगम - डॉ. गणेश चंद्र बास्की, अध्यक्ष, जंतु विज्ञान विभाग रांची विश्वविद्यालय झारखंड
दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी चिति संवाद, साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श का हुआ समापन
मेरठ। स्वामी विवेकानंद सुभारती विश्वविद्यालय मेरठ के राहुल सांकृत्यायन सुभारती स्कूल ऑफ लिंग्विस्टिक्स एंड फॉरेन लैंग्वेजिज (भाषा विभाग) तथा कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय एवं अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ, दिल्ली के संयुक्त तत्वावधान में चल रही दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन में देशभर से आए शिक्षाविदों व विद्वानों तथा लेखकों ने चिति संवाद, साहित्य और कलाओं में चिति विमर्श विषय पर अपने विचार रखें।
अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ की ओर से प्रथम सत्र का संचालन श्री सुनील बादल ने किया।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे जंतु विज्ञान विभाग रांची विश्वविद्यालय झारखंड के अध्यक्ष डॉ. गणेश चंद्र बास्की ने कहा कि लोक संस्कृति गांवों, कस्बों और शहरों के रूप में होती है। सब की अपनी भाषा, रहन सहन, खान पान और परम्पराएं एक दूसरे से विभिन्न होने के साथ सब की एकता ही भारतीयता की पहचान है। उन्होंने कहा कि भाषाएं परम्परा व लोक संस्कृति हमारे देश की संस्कृति का संगम है।
जनजाति साहित्य और संस्कृति के विशेषज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत चंदेला ने लोक समाज और लोक परंपराओं पर विस्तारपूर्वक अपना प्रकाश डाला।
दिल्ली से प्रसिद्ध लेखिका और रंगकर्मी सविता शर्मा नागर ने भारत एक समाज लोक समाज और लोक परम्पराएं जैसे विषय को अपनाकर आज के समय से जोड़ते हुए नवीन विचारधाराए दी।
दूसरे सत्र में शोधार्थी भाषा विभाग सुश्री प्रज्ञा शर्मा ने अतिथि परिचय एवं स्वागत भाषण दिया। इस सत्र का संचालन शिक्षाविद्, संस्कृति अध्येता एवं पूर्व प्रकाशन सलाहकार, केंद्रीय हिन्दी संस्थान, शिक्षा मंत्रालय,भारत सरकार के डॉ. स्वर्ण अनिल ने विभिन्न कथाओं के माध्यम से देश को एक सूत्र में जोड़ने वाले चिति तत्त्व का बोध कराया ।
डॉ प्रेम चंद्र न्यासी अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ ने साहित्य में चित्रित तत्व स्वरूप और संवेदना का किस प्रकार समावेश होता है इस पर विस्तारपूर्वक अपने विचारों को संबोधित कर सभागार में उपस्थित सभी श्रोता को अपने विचारधारा से जोड़ दिया।
अध्यक्ष, हिंदी विभाग, शहीद मंगल पांडे राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, मेरठ प्रो. सुधा रानी सिंह ने साहित्य में चिति का समावेश कैसे आया और किस प्रकार वह आज संपूर्ण साहित्य को अपने अंतर्गत समाहित किए है उस पर विस्तार सहित प्रकाश डाला।
सत्र की अध्यक्ष सुपरिचित लेखक, हैदराबाद तेलंगाना की डॉ. सुमन चौरे ने कहा कि जीवन के अनुभव, अगणित अनुसंधान और अनुकूलन की प्रक्रिया से संचरण के उपरांत ही किसी समाज या मानव समुदाय की ‘चिति’ का विकास होता है।
तीसरे सत्र का आयोजन कला में चिति का स्वरूप के विषय पर हुआ। इस सत्र का संचालन प्रसिद्ध निर्माता निर्देशक अभिजीत कुमार द्वारा किया गया।
प्रसिद्ध लोक चित्रकला कलाकार सुषमा सिटोके ने कलाओं में चिति का स्वरूप होता क्या है, इस पर विरोध विवेचन करते हुए कुशलता पूर्वक अपने विचारों को उद्बोधित कर सभागार में उपस्थित सभी श्रोतागणों के साथ तादात्म्य में स्थापित किया।
रंगकर्मी और निर्माता निर्देशक राजेश अमरोही ने चिति का स्वरूप कलाओं में किस प्रकार अपने आप को समाहित किए हुए हैं इस पर अपने विचार प्रस्तुत किये। प्रो. रचना विमल ने संपूर्ण सत्र की अध्यक्षता की।
समापन सत्र में अतिथि परिचय एवं स्वागत शोधार्थी भाषा विभाग प्रज्ञा द्वारा किया गया। प्रतिवेदन प्रस्तुति भाषा विभाग से डॉ. आशीष कुमार द्वारा की गई।
विशिष्ट उद्बोधन पदम डॉ. माधुरी बड़थ्वाल द्वारा दिया गया। इसके उपरांत विशिष्ट उद्बोधन अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष सोमनाथ शर्मा द्वारा दिया गया। सह अध्यक्षता पद्मश्री विष्णु पांडे की रही।
सुभारती विश्वविद्यालय की कुलाधिपति डॉ स्तुति नारायण कक्कड़ ने कहा कि लोक साहित्य और लोक संस्कृति भारतीय समाज की संपदा हैं। भारतीय संस्कृति में साहित्य एक महत्वपूर्ण अंग है, जो समाज की सामाजिक, धार्मिक और नैतिक विचारधाराओं को प्रकट करता है। उन्होंने राष्ट्रीय संगोष्ठी के सफल आयोजन पर सुभारती विश्वविद्यालय मेरठ के राहुल सांकृत्यायन सुभारती स्कूल ऑफ लिंग्विस्टिक्स एंड फॉरेन लैंग्वेजिज (भाषा विभाग), कला एवं सामाजिक विज्ञान संकाय एवं अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ दिल्ली के शुभकामनाएं दी।
कुलपति मेजर जनरल डॉ. जी. के. थपलियाल ने गीता के उद्धरण देते हुए चिति के स्वरूप को स्पष्ट किया तथा कहा कि देश को सही दिशा देने हेतु इस प्रकार के आयोजन किया जाना आवश्यक है तथा भविष्य में भी इस तरह के आयोजन होने चाहिएI मुख्य कार्यकारी अधिकारी डॉ.शल्या राज एवं कार्यकारी अधिकारी डॉ.कृष्णा मूर्ति ने संगोष्ठी के सफल आयोजन पर अपनी बधाई दी।
इस अवसर पर अखिल भारतीय राष्ट्रवादी लेखक संघ के कार्यकारी अध्यक्ष सोमनाथ शर्मा एवं अन्य पदाधिकारियों के द्वारा विश्वविद्यालय के पदाधिकारियों को स्मृति चिह्न एवं अंगवस्त्रम भेंट कर सम्मानित किया गया।
धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम संयोजक एवं अध्यक्ष भाषा विभाग डॉ. सीमा शर्मा द्वारा किया गया।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में में लगभग 21 राज्यों के अतिथि गण उपस्थित रहे और 350 से अधिक प्रतिभागियों ने राष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभाग किया।
इस अवसर पर कला और सामाजिक विज्ञान संकाय के अध्यक्ष प्रो. सुधीर त्यागी, डॉ. सीमा शर्मा, प्रो राजेश्वर पाल डॉ. रफ़त खानम, डॉ. मनीषा लूथरा, डॉ. स्वाति, डॉ. यशपाल, डॉ. आशीष कुमार ‘दीपांकर’, डॉ. निशि राघव, डॉ. रणवीर सिंह, अंकित, सान्या अग्रवाल तथा इसी क्रम में भाषा विभाग के शोधार्थी, परास्नातक एवं स्नातक के समस्त छात्र-छात्राओं का कार्यक्रम सहयोग में विशेष योगदान रहा।
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