बच्चों को दें खुला आसमान
इलमा अज़ीम
आज बच्चों को खुला आसमान चाहिए। जहां वह अपनी क्षमता का बेहतर प्रदर्शन कर सकें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर कहते हैं कि विफलताओं से निराश नहीं होकर उससे सबक लेना चाहिए। जीवन में सफल होने के लिए बहुत कुछ होता है।
उन्होंने मन की बात में बच्चों, परिजनों और टीचर्स तीनों को ही संदेश देने का प्रयास किया है। होता यह है कि जो बच्चें होशियार होते हैं या प्रभावशाली परिवार के हैं तो टीचर्स का उन पर विशेष ध्यान होता है और जो बच्चें कमजोर होते हैं तो पीटी मीटिंग के माध्यम से पैरेंट्स को नीचा दिखा कर इतिश्री कर लेते हैं।
बच्चों की नाकामी पर कभी किसी स्कूल ने या टीचर ने जिम्मेदारी ली हो यह आज तो लगभग असंभव ही है। चाहे आप पढ़ाई के नाम पर स्कूल को कितनी ही फीस देते हो आप पर प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष तौर पर बच्चे को ट्यूशन कराने का दबाव तो आ ही जाता है। यदि शिक्षण संस्थानों में कमजोर और औसत बच्चों पर अधिक ध्यान दिया जाए तो तस्वीर का पहलू दूसरा ही हो सकता है।
पैरेंट्स को बच्चों की लगन, रुचि को समझना होगा। अपनी अपेक्षाएं उस पर लादने के स्थान पर दिशा देने के प्रयास करने होंगे। बच्चों के साथ बैठकर खुलकर बात करें। उनकी ईच्छा, लगन और कोई परेशानी है तो उसे समझने का प्रयास करें। बच्चों में परस्पर तुलना करके बालक मन को कुंठित नहीं करना चाहिए।
बच्चों को निराश करने के स्थान पर मोटिवेट करने के समग्र प्रयासों की आवश्यकता है। बच्चों को मशीन नहीं बनाया जाना चाहिए। बच्चों का मनोबल बढ़ाने उनमें सकारात्मकता विकसित करने की दिशा में हमें काम करना होगा। अब सबका दायित्व हो जाता है कि इन सकारात्मक पक्षों को बच्चों तक पहुंचाया जाएं। बच्चों को समझाना होगा कि बड़ी बात जीवन में सफल होना है।
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