क्या ठीक हैं यूजीसी के नए नियम?

- डा. वरिंदर भाटिया
भारत में शिक्षा को अधिक प्रभावी, समावेशी और व्यावहारिक बनाने के उद्देश्य से नई शिक्षा नीति 2020 (एनईपी-2020) के तहत विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में बड़े बदलाव किए गए हैं। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हाल ही में एक ड्राफ्ट जारी किया है, जिसमें शिक्षक नियुक्ति और प्रमोशन के नए नियम पेश किए गए हैं। इस ड्राफ्ट का मुख्य उद्देश्य शिक्षकों की योग्यता और उनकी विशेषज्ञता को प्राथमिकता देना है, ताकि शिक्षा प्रणाली को नई ऊंचाइयों पर ले जाया जा सके। अब तक शिक्षक बनने के लिए यह अनिवार्य था कि उम्मीदवार का ग्रेजुएशन, पोस्ट ग्रेजुएशन और पीएचडी या नेट एक ही विषय में हो। लेकिन यूजीसी ने इस बाध्यता को समाप्त कर दिया है।
नए नियमों के अनुसार यदि उम्मीदवार ने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन किसी भी विषय में किया हो, तो भी वह शिक्षक बन सकता है, बशर्ते कि उसके पास पीएचडी या नेट किसी संबंधित विषय में हो। शिक्षक नियुक्ति अब ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के विषय पर निर्भर नहीं करेगी, बल्कि केवल उम्मीदवार की पीएचडी और नेट क्वालिफिकेशन पर आधारित होगी। इस बदलाव से न केवल शिक्षण में अधिक लचीलापन आएगा, बल्कि उम्मीदवारों को अपनी विशेषज्ञता के अनुरूप करियर बनाने का बेहतर अवसर मिलेगा।
अब शिक्षक भर्ती केवल परंपरागत विषयों तक सीमित नहीं रहेगी। योग, संगीत, नाटक, मूर्तिकला और अन्य परफॉर्मिंग आट्र्स में विशेषज्ञता रखने वाले लोग भी शिक्षक बन सकेंगे। शिक्षक भर्ती और प्रमोशन अब केवल शैक्षणिक डिग्रियों पर निर्भर नहीं रहेगा। इसके बजाय, उम्मीदवार के अनुभव, कौशल और शैक्षणिक प्रदर्शन को भी ध्यान में रखा जाएगा। नए नियमों के तहत भारतीय भाषाओं में एकेडमिक पब्लिकेशन और डिग्री प्रोग्राम्स को प्राथमिकता दी जाएगी। इससे भारतीय भाषाओं का विकास होगा और छात्रों को अपनी मातृभाषा में पढ़ाई करने के अधिक अवसर मिलेंगे। उम्मीदवार अब नेट या सेट में क्वालिफाई करने वाले किसी भी विषय में शिक्षण करियर बना सकते हैं, भले ही उनका ग्रेजुएशन या पोस्ट ग्रेजुएशन उस विषय से अलग हो। यूजीसी ने न केवल शिक्षक भर्ती, बल्कि प्रमोशन के नियमों में भी महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।
शिक्षक प्रमोशन अब केवल डिग्री पर आधारित नहीं होगा। प्रमोशन के लिए शिक्षकों के अनुभव, कौशल और शिक्षण प्रदर्शन को प्राथमिकता दी जाएगी। कला, खेल और अन्य पारंपरिक क्षेत्रों में उत्कृष्टता प्राप्त करने वाले शिक्षकों को भी प्रमोशन में समान अवसर दिए जाएंगे। दिव्यांग खिलाडिय़ों और अन्य विशेष प्रतिभाओं को भी शिक्षण क्षेत्र में समान अवसर मिलेगा। नए नियमों से परफॉर्मिंग आट्र्स, योग, संगीत और पारंपरिक विषयों में विशेषज्ञता रखने वाले लोगों के लिए शिक्षण क्षेत्र में प्रवेश आसान होगा। नई प्रक्रिया भारत की शिक्षा प्रणाली को अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप बनाएगी। ड्राफ्ट का फोकस भारतीय भाषाओं को शिक्षा का माध्यम बनाने और उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने पर है। नए नियम दिव्यांग, खिलाडिय़ों और अन्य विशेष क्षेत्रों से जुड़े लोगों को समान अवसर प्रदान करेंगे।


देश के कुछ राज्यों द्वारा इन प्रस्तावित सुधारों का विरोध किया जा रहा है। तमिलनाडु विधानसभा ने यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) के संशोधित नियमों की निंदा करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है। प्रस्ताव में तर्क दिया गया है कि नए नियम राज्य की स्वायत्तता का उल्लंघन करते हैं और उसके हायर एजुकेशन सिस्टम को कमजोर करते हैं। बता दें कि विवाद के केंद्र में कुलपतियों की नियुक्ति में राज्यपालों को अधिक अधिकार देने का निर्णय है। यूजीसी का तर्क है कि विश्वविद्यालयों के लिए अधिक स्वायत्तता और शैक्षणिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए ये बदलाव आवश्यक हैं।
हालांकि तमिलनाडु सरकार का तर्क है कि यह कदम राज्य के अधिकारों का उल्लंघन करता है और अपनी शिक्षा प्रणाली को संचालित करने की उसकी क्षमता को कमजोर करता है। कुछ राज्यों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि यह संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन है और इसका छात्रों के भविष्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ेगा। यह भी कहा गया है कि राज्य को अपनी शिक्षा प्रणाली को संचालित करने का अधिकार है और यूजीसी की कार्रवाई उसके अधिकार का अतिक्रमण है। यूजीसी ने नियम बनाए हैं कि कुलपति के चयन के लिए गठित की जाने वाली चयन समिति का निर्णय राज्यपाल करेंगे। कुलपतियों की नियुक्ति का अधिकार राज्यपाल को देना विश्वविद्यालयों को बर्बाद करने का ही तरीका है। राज्यपालों को मनमाने ढंग से कुलपति नियुक्त करने के लिए अधिक अधिकार देना उचित नहीं है।
प्रस्तावित सुधारों की आलोचना में यह भी कहा जा रहा है कि इन नियमों को राज्य सरकारों द्वारा अपने संसाधनों और आर्थिक ताकत से बनाए गए विश्वविद्यालयों को हड़पने का अवैध प्रयास माना जाना चाहिए। यह नियम संघीय सिद्धांत के विरुद्ध है। शिक्षा पर केवल जनता द्वारा चुने गए लोगों का ही अधिकार होना चाहिए। तभी सभी लोगों को पूर्ण रूप से शिक्षा प्रदान की जा सकती है। यूजीसी के ड्राफ्ट नियमों को लेकर कहना न होगा कि इससे जमीनी और मौलिक टैलेंट अकादमिक क्षेत्र में लाने के रास्ते बन सकते हैं। कई छात्र काबिलीयत के बावजूद पात्रता परीक्षा पास करने में कामयाब नहीं हो पाते हैं। इसका मतलब यह नहीं कि वे अच्छे प्राध्यापक नहीं बन पाएंगे। क्या आचार्य चाणक्य जी ने पात्रता परीक्षा पास की थी? क्या राज्यों द्वारा राजनीतिक हितों की पूर्ति के लिए इन नियमों का विरोध तुच्छ मानसिकता की अभिव्यक्ति है? यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (यूजीसी) के ड्राफ्ट मानदंडों के मुताबिक इंडस्ट्री के एक्स्पट्र्स के साथ-साथ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन, पब्लिक पॉलिसी और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के सीनियर प्रोफेशनल भी कुलपति के रूप में नियुक्ति के लिए जल्द ही पात्र होंगे।
नए दिशा-निर्देश यूनिवर्सिटी में फैकल्टी मेंबर्स की नियुक्ति के मानदंडों में भी संशोधन करेंगे, जिनके तहत कम से कम 55 फीसदी माक्र्स के साथ मास्टर ऑफ इंजीनियरिंग (एमई) और मास्टर्स ऑफ टेक्नोलॉजी (एमटेक) में पोस्ट ग्रेजुएशन डिग्री रखने वाले लोगों को यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन के नेशनल एलिजिबिलिटी टेस्ट (नेट) पास किए बिना असिस्टेंट प्रोफेसर लेवल पर डायरेक्ट भर्ती किए जा सकने की अनुमति मिल जाएगी। क्या यह ठीक नहीं है? हम सोचें कि इससे पहले, कुलपति पद के लिए उम्मीदवारों का ऐसा प्रतिष्ठित शिक्षाविद होना जरूरी था, जिनके पास यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के रूप में या प्रमुख अनुसंधान या शैक्षणिक प्रशासनिक भूमिका में कम से कम 10 साल का एक्सपीरियंस हो।


अब इंडस्ट्री, सार्वजनिक प्रशासन, सार्वजनिक नीति या सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में कम से कम 10 साल के सीनियर लेबल के एक्सपीरियंस वाले ऐसे व्यक्ति भी कुलपति के पद के लिए पात्र हैं जिनका एकेडमिक रिकॉर्ड अच्छा है। क्या यह ठीक नहीं है? यदि ठीक है तो ऐसे ही और प्रस्तावित सुधारों को सकारात्मक तरीके से लेना क्या गलत होगा? क्या प्रस्तावित सुधारों के विरोध से देश वैश्विक स्तर पर शिक्षा में एक बड़ी ताकत बन सकता है? ऐसे सभी सवालों पर शिक्षाविदों को अपना मत प्रकट करना चाहिए। शिक्षा पर राजनीति, देशहित में न हो, तो अच्छा रहेगा। इस विषय पर गहन चिंतन हो।

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