सख्त जवाब जरूरी

इलमा अजीम
साल 2024 खत्म होते-होते भारत के चीन से लगे उत्तरी और पूर्वी मोर्चों पर सब कुछ शांत नजर आ रहा था, लेकिन नया साल शुरू होते ही 3 जनवरी 2025 को खबर आई कि चीन ने अक्साई क्षेत्र के दो स्थानों के नाम बदल दिए हैं। यह क्षेत्र 1962 से चीन के अवैध कब्जे में है। चीन द्वारा भारतीय क्षेत्रों के नाम बदलने की यह घटना नई नहीं है। चीन का यह “मैप वॉर” उसके विस्तारवादी नीति का हिस्सा है।


 चीन वैश्विक मंचों, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म और सरकारी दस्तावेजों में इन नक्शों का उपयोग करता है ताकि विवादित क्षेत्रों पर अपने दावे को वैध ठहरा सके। पिछले सात वर्षों में, चीन ने चार बार अरुणाचल प्रदेश की विभिन्न जगहों के नाम बदलने की कोशिश की है। पहली बार 2017 में, जब उसने छह स्थानों के नाम बदले थे। दूसरी बार 2021 में, जब 15 स्थानों के नाम बदले थे। तीसरी बार अप्रैल 2023 में, जब 11 स्थानों के नाम बदले और चौथी बार नौ महीने पहले, जब 30 स्थानों के नाम चीन ने बदल दिए थे। 
चीन की इस रणनीति का मकसद न सिर्फ भारत पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने दावों को वैध साबित करना भी है। नाम बदलने की यह चाल खासकर तब ज्यादा देखने को मिलती है, जब सीमा विवाद को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चा होती है। इसके जरिए चीन यह संदेश देना चाहता है कि ये क्षेत्र उसके भू-राजनीतिक इतिहास का हिस्सा हैं। इसके पीछे चीन का एक और खास उद्देश्य है, वह अपने नागरिकों के बीच राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देता है। वह ऐसे कदम उठाकर घरेलू राजनीति में समर्थन जुटाने की कोशिश करता है। साथ ही, द्विपक्षीय बातचीत में अपनी शर्तें थोपने के लिए इन क्षेत्रों को विवादित क्षेत्र मानने से भी इनकार करता है। 
चीन के इस रवैये से बचाव के लिए भारत को सीमा सुरक्षा को लेकर हर स्तर पर सतर्क और तैयार रहना होगा। सबसे पहले सटीक नक्शों का प्रचार और जियो-मैपिंग तकनीक का उपयोग चीन की गलत जानकारी का प्रभावी जवाब देना होगा। सीमा क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे को मजबूत करना अत्यंत जरूरी है। चीन ने अपनी तरफ से सडक़ों, पुलों और हवाई पट्टियों का व्यापक विकास किया है। इसका मुकाबला करने के लिए भारत को तेजी से आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करना होगा। सैटेलाइट, ड्रोन और एडवांस रडार जैसी तकनीकों का उपयोग बढ़ाना समय की मांग है। 




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