मेरठ कॉलेज में धूमधाम से मनाया गया नेताजी सुभाष चंद्र बोस का 128 वां जन्मदिवस
महात्मा गांधी को सुभाष चंद्र बोस ने दी थी राष्ट्रपिता की उपाधि: प्रो केडी शर्मा
हिटलर की आत्मकथा मेंन कैम्फ में से भी नेताजी ने हटवाए थे कुछ अंश: जेके अग्रवाल
मेरठ। बुधवार को मेरठ कॉलेज के इतिहास विभाग द्वारा डॉ रामकुमार गुप्ता सभागार में नेताजी सुभाष चंद्र बोस का 128 वां जन्मदिवस धूमधाम से मनाया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर केडी शर्मा ने सुभाष चंद्र बोस के नेता बनने की कहानी प्रस्तुत की। इस इस कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में मेरठ कॉलेज प्रबंध समिति के पूर्व अध्यक्ष जीके अग्रवाल ने भी सहभागिता की।
बतादे जीके अग्रवाल आजाद हिंद फौज के कर्नल ढिल्लन के मित्र रहे हैं, और कर्नल ढिल्लन जब भी मेरठ आते थे तो जीके अग्रवाल के आवास पर ही निवास करते थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता इतिहास विभाग की प्रोफेसर अर्चना सिंह ने की और कार्यक्रम का संचालन प्रो चंद्रशेखर भारद्वाज ने किया। प्रो चंद्रशेखर ने कार्यक्रम की शुरुआत निम्न पंक्तियों से की- जंजीरों को तोड़ने की आवाज बन गए/ हर दिल में आजादी का आगाज बन गए। इस कार्यक्रम में मेरठ कॉलेज डीन प्रो अनीता मालिक एवं प्राचार्य प्रो नीरज कुमार भी उपस्थित थे। सभागार को संबोधित करते हुए डॉक्टर केडी शर्मा ने बताया कि कोलकाता के रिसर्च ब्यूरो में नेताजी से संबंधित कलेक्टिव वर्क ऑफ सुभाष चंद्र बोस नामक पुस्तक है। इसके 12 खंड हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में इन 12 खंडों से उनके संपूर्ण जीवन का पता लग जाता है। उन्होंने बताया कि युवावस्था में सुभाष चंद्र बोस कुछ समय के लिए हिमालय में भी गए थे किंतु वहां जाकर उन्हें अनुभव हुआ कि उन्हें सांसारिक कार्य में ही लगना चाहिए अतः वह वापस सांसारिक दुनिया में आ गए। उसके बाद उनके पिता की इच्छा थी कि वह इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा उत्तीर्ण कर अधिकारी बन जाए। मात्र 10 महीने की पढ़ाई के बाद ही उन्होंने इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा उत्तीर्ण की किंतु अंग्रेजी राज्य से प्रतिरोध के कारण उससे भी त्यागपत्र दे दिया। 1920 में जब कांग्रेस की कमान गांधी जी के पास थी तो उन्होंने गांधी जी से भी प्रश्न किया था कि एक वर्ष तक यदि भारतीय जनता गांधी जी के कार्यक्रम का अनुसरण करे तो किस प्रकार 1 वर्ष में स्वराज की प्राप्ति हो जाएगी। वह गांधी जी से सहमत नहीं थे उन्होंने अपना दूसरा रास्ता चुना। 1937 में वह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और 1939 में पुनः अध्यक्ष चुने गए, किंतु गांधी जी से मतभेद के चलते उन्होंने त्यागपत्र दे दिया और फिर फारवर्ड ब्लाक की स्थापना की। 1939 में अंग्रेजी सरकार ने उन्हें घर में नजर बंद कर दिया किंतु वे एक अफगान का हुलिया धारण कर भारत से अफगानिस्तान और वहां से जापानी एवं यूरोप जा पहुंचे। नेताजी ने जापान के नायक तूजो, इटली के नायक मुसोलिनी और जर्मनी के हिटलर से संपर्क किया। उनके व्यक्तित्व से यह सभी लोग प्रभावित थे। मोहन सिंह और रासबिहारी बोस के साथ उन्होंने आजाद हिंद फौज का नेतृत्व संभाला और जब आजाद हिंद फौज की टुकड़ी को लेकर वह भारतीय सीमाओं की तरफ चले तो उन्होंने 6 जुलाई 1944 को महात्मा गांधी के नाम रेडियो संदेश भेजा । जिसमें पहली बार सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को फादर ऑफ नेशन अर्थात राष्ट्रपिता कहा।
समारोह के विशिष्ट अतिथि जीके अग्रवाल ने संबोधित करते हुए बताया की कर्नल ढिल्लन से उनके पारिवारिक संबंध रहे हैं और जब भी कर्नल ढिल्लन मेरठ आते थे तो सदैव कई कई दिनों तक उनके आवास पर ही निवास किया करते थे। श्री जीके अग्रवाल ने सभा को बताया की आजाद हिंद फौज की स्थापना सुभाष चंद्र बोस ने नहीं बल्कि जनरल मोहन सिंह ने की थी। उन्होंने सभा को सूचित किया कि सुभाष चंद्र बोस इतने मेधावी थे कि 1 वर्ष से काम की पढ़ाई के बाद ही इंडियन सिविल सर्विसेज में उन्होंने चौथा स्थान प्राप्त किया था। उस समय इंडियन सिविल सर्विस की परीक्षा में एक निबंध लिखने के लिए आता था, जिसमें उत्तर 1000 शब्दों में देना होता था। उस वर्ष निबंध का विषय था ब्रिटिश पॉलिसी इन इंडिया। नेताजी ने केवल तीन शब्दों में उसका जवाब परीक्षा में लिखा और वह तीन शब्द थे डिवाइड एंड रूल। उन्होंने यह भी सूचित किया की जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस हिटलर से मिले और उन्होंने हिटलर की आत्मकथा में मेंन कैम्फ पढ़ी तो उसमें उन्होंने हिटलर से सीधा कहा कि इसमें भारतीयों के संबंध में कुछ बातें गलत लिखी गई है आप इन्हें करेक्ट करें। तब हिटलर ने उनसे वादा किया कि अगले वर्ष जब नया संस्करण आएगा तो यह बातें मैं अपनी आत्मकथा से हटवा दूंगा। इतने बहादुर थे नेताजी सुभाष चंद्र बोस। मेरठ कॉलेज के प्रो नीरज कुमार ने बताया कि जब वह जापान गए थे टोक्यो से 4 किलोमीटर दूर रैंकोजी पगोडा टेंपल है, जिसमें नेताजी सुभाष चंद्र बोस की अस्थियां संरक्षित की गई है। यह अस्थियां 15 सितंबर 1945 से संरक्षित है। प्रोफेसर बकुल रस्तोगी ने सभा को जानकारी देते हुए कहा की जय हिंद का नारा जिससे सारा देश आज भी एकता का अनुभव करता है नेताजी की महान दिन है। इसी प्रकार तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा युवाओं के खून में उबाल ला देता था। मेरठ कॉलेज के सचिव श्री विवेक कुमार गर्ग ने अपने संदेश में बताया की नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारत माता की उन चंद संतानों में से हैं जिनसे आज भी भारत का हर युवा प्रेरणा प्राप्त करता है। नेताजी एक महान भाषण कर्ता थे और उनमें संगठन खड़ा करने की अद्भुत क्षमता थी। कार्यक्रम के अंत में विभाग की अध्यक्ष प्रो अर्चना सिंह ने सभी का धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में अर्चित बंसल, रोहित कश्यप, जॉनी कुमार, अलकेश, शिव वर्धन इत्यादि का सहयोग रहा।
No comments:
Post a Comment