उद्यमिता और आधी आबादी

 इलमा अजीम 

वर्तमान समय में समाज की समृद्धि और सामाजिक परिवर्तन के लिए उद्यमिता (एंटरप्रेन्योरशिप) एक शक्तिशाली उत्प्रेरक बन गई है। यह धारणा लंबे समय तक बनी रही कि उद्यमिता पुरुष प्रधान है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में नीति-निर्धारकों और संस्थानों द्वारा महिला उद्यमिता को प्रोत्साहित करने के प्रयासों से यह धारणा बदल रही है। महिलाएं अब उद्यमिता के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। महिला उद्यमियों के योगदान को स्वीकार करते हुए भारत सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं। मुद्रा योजना, स्टैंड अप इंडिया योजना, महिला ई-हाट और अन्य योजनाओं के अंतर्गत महिलाओं को 10 लाख से 1 करोड़ रुपए तक के ऋण मिलने का प्रावधान है।


 आईबीईएफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में एमएसएमई मालिकों में एक बड़ा हिस्सा महिलाओं का है। यह महिलाएं देश की श्रम शक्ति में भी महत्वपूर्ण योगदान देती हैं। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारतीय व्यवसाय, महिलाओं की श्रम शक्ति में भागीदारी बढ़ाकर वैश्विक जीडीपी में अरबों डॉलर का योगदान कर सकते हैं।


 अध्ययन में यह भी पाया गया कि महिला उद्यमी अधिक अनुकूलनीय होती हैं और परिवर्तनों के लिए तेजी से तैयार हो जाती हैं। साथ ही, महिला उद्यमियों का भावनात्मक बुद्धिमत्ता भी अधिक होता है। भारत में महिलाओं द्वारा संचालित ऑनलाइन व्यवसायों में तेजी देखी गई। महामारी के दौरान, महिला-नेतृत्व वाले स्टार्टअप्स की संख्या में भारी वृद्धि हुई, जिसने भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत बनाया। सामाजिक उद्यमिता भी गति पकड़ रही है, जहां महिलाएं शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सतत विकास के क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।

महिला उद्यमिता की पूरी क्षमता को साकार करने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण आवश्यक है। वित्तीय पहुंच, कौशल विकास और अनुकूल पारिस्थितिकी तंत्र के निर्माण से महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts