सपा विधायक रफीक अंसारी का 28 साल पुराना केस बंद
इसी मुकदमे में हुए 101 गैर जमानती वारंट,बाराबंकी से गिरफ्तारी फिर काटी जेल
मेरठ। शहर सीट से समाजवादी पार्टी के विधायक रफीक अंसारी का 28 साल पुराना केस कोर्ट ने बंद कर दिया है। मुकदमे में गवाहों, बयानों और ठोस सुबूत न मिलने के कारण एमपी एमएलए कोर्ट ने इस केस को क्लोज कर दिया है। साथ ही सपा विधायक को बरी कर दिया है।
बता दें कि 1995 में मेरठ शहर में हुई आगजनी का ये वही मुकदमा है जिसमें सपा विधायक 56 दिन जेल में रहे। जमानत पर बाहर आए। इसी मुकदमे में सपा विधायक को 101 गैर जमानती वारंट जारी हुए थे लेकिन वो फिर भी कोर्ट में पेश नहीं हुए थे।मेरठ के एमपी-एमएलए कोर्ट में इस मुकदमे में 13 दिसंबर को फाइनल सुनवाई हुई। अंतिम सुनवाई के दिन जज ने दोनों पक्षों से सुबूत और गवाह मांगे। लेकिन दोनों ही पक्षों की तरफ से कोई ठोस सुबूत, मजबूत गवाह नहीं मिले। इसके बाद अदालत ने न्यायहित में फैसला सुनाते हुए रफीक अंसारी को मुकदमे से बरी कर दिया। 23 साल पुराने केस को बंद कर दिया। इसी केस में विधायक को मेरठ पुलिस बाराबंकी से अरेस्ट कर लाई थी। इसके बाद विधायक 56 दिन मेरठ जिला जेल में रहे। कोर्ट से जमानत मिलने पर बाहर आए थे।
विधायक रफीक अंसारी के वकील विवेक कुमार ने बताया 1995 में मेरठ शहर के एक इलाके में आगजनी से जुड़ा एक मुकदमा दर्ज हुआ था। जिसमें चार्जशीट में रफीक अंसारी जो वर्तमान में सपा से शहर सीट से विधायक हैं उनका नाम नहीं था। इसके बाद इस मामले में एक सप्लीमेंट चार्जशीट आई जिसमें रफीक अंसारी का नाम था। वो मैटर चलता रहा। बाद में पता चला कि रफीक अंसारी के खिलाफ वारंट है।पुलिस ने उन्हें 23 मई 2024 को बाराबंकी से अरेस्ट किया, 56 दिन वो जेल में रहे इसके बाद कोर्ट से वो जमानत पर बाहर आए। इसके बाद केस ट्रायल में आया। 2024 में इस केस का ट्रायल हुआ।इस मुकदमे में 23 लोग थे जिसमें 22 लोगों का पहले ही इक्वेटल हो चुका था। ट्रायल में ऐसे कोई आधार नहीं मिला जिससे ये मुकदमा आगे चलाया जाता, या जिससे प्रतीत होता कि न्यायहित में ये केस चलाया जाए।
न्यायहित में ही विधायक रफीक अंसारी को बरी कर दिया गया है। अब ये केस खत्म हो गया है। रफीक अंसारी अकेले इस मामले में बचे थे क्योंकि हमें जानकारी नहीं मिल पाई। उनके खिलाफ वारंट होते रहे। बाकी 22 लोग पहले ही इक्वेटल हो चुके थे। कोर्ट ने सभी एविडेंस तलब किए लेकिन इसमें मुकदमा वादी का पहले ही देहांत हो चुका है। कोर्ट को अब ऐसा कोई बयान या एविडेंस नहीं मिला जिसके आधार पर इस केस को आगे बढ़ाया जाता। इसलिए इस मुकदमे को कोर्ट ने खत्म कर दिया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट से विधायक को 101 गैर-जमानती वारंट जारी किए गए थे। इसके बावजूद विधायक कोर्ट मे पेश नहीं हुए थे। इसके बाद मेरठ एसएसपी ने सीओ सिविल लाइन के नेतृत्व में उनकी गिरफ्तारी के लिए टीम गठित कर दी थी। मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, एमपी- एमएलए मेरठ की अदालत से आईपीसी की धारा 147, 436 और 427 के तहत विचाराधीन आपराधिक मुकदमे में विधायक रफीक अंसारी के खिलाफ जारी वारंट को चुनौती दी गई थी। मुकदमे में सितंबर 1995 में 35-40 अज्ञात लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की थी। इसमें 22 आरोपियों के खिलाफ आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया। उसके बाद याची के खिलाफ एक पूरक आरोप पत्र प्रस्तुत किया गया, जिस पर संबंधित अदालत ने अगस्त 1997 में संज्ञान लिया था। रफीक अंसारी अदालत में पेश नहीं हुए थे। 12 दिसंबर 1997 को गैर-जमानती वारंट जारी हो गया था। इसके बाद बार-बार 101 गैर-जमानती वारंट जारी हो गए। धारा 82 सीआरपीसी के तहत कुर्की प्रक्रिया के बावजूद रफीक अंसारी अदालत में पेश नहीं हुए और हाईकोर्ट चले गए। उनके वकील ने तर्क दिया था कि 22 आरोपियों को 15 मई 1997 के फैसले में बरी कर दिया गया। ऐसे में विधायक के खिलाफ कार्रवाई रद होनी चाहिए। कोर्ट ने इस मामले में डीजीपी को निर्देश दिए थे कि रफीक अंसारी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट द्वारा जारी किए गए गैर- जमानती वारंट की तामील सुनिश्चित करें।
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