चुनौतियों का वर्ष 2025
इलमा अजीम
आने वाला साल अनिश्चितताओं से भरा है। नए कैलेंडर वर्ष की शुरूआत हम हमेशा आशाओं के साथ करते हैं। आशा के साथ जीना मानव अस्तित्व की प्रकृति में है। आने वाले वर्ष में चुनौतियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, आशावादी हमेशा निराशावादियों से आगे निकल जाते हैं। निराशावादी अर्थशास्त्रियों द्वारा फैलाई गई निराशा या कयामत की कोई भी संभावना आशावादियों को रोक नहीं सकती। भविष्य के प्रति उनका विश्वास कम नहीं होता।
उसी भावना के साथ वर्ष 2025 के लिए एक पूर्वानुमान है जो कठिन चुनौतियों से भरा है। वैश्विक अनिश्चितता के मुख्य स्रोत आर्थिक और भू-राजनीतिक होते हैं। बाद में कुछ और भी कारक होते हैं। इनमें यूक्रेन में अंतहीन युद्ध का असर, इजरायल-हमास संघर्ष और पश्चिम एशिया के व्यापक क्षेत्र में इसका फैलाव, कई देशों में धुर दक्षिणपंथी दलों का उदय प्रमुख है, जिनमें जर्मनी भी शामिल है। बढ़ती असमानता एक वैश्विक चिंता है और इसके उन्मूलन या उसमें कमी लाना संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों (सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल्स- एसडीजीज़) में से एक है। लोक-लुभावन नारे देने वाले नेताओं का उदय, कल्याणकारी योजनाओं में बढ़ता खर्च बढ़ती असमानता की प्रतिक्रिया है। यह एक नई चुनौती है कि कल्याणकारी खर्च के राजकोषीय बोझ का प्रबंधन कैसे किया जाए। भारत में भी केंद्र और राज्य- दोनों सरकारों के कल्याणकारी खर्च में बड़े पैमाने पर विस्तार हुआ है।
भारतीय रिजर्व बैंक की एक हालिया रिपोर्ट में सब्सिडी और मुफ्त उपहारों को अंधाधुंध रूप से बढ़ाने के खिलाफ चेतावनी दी गई है। देश में दो अन्य राज्य- दिल्ली और बिहार में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं तथा वहां गरीबों, महिलाओं और समाज के अन्य वर्गों को आय सब्सिडी की बात पहले से ही की जा रही है। कम से कम अभी के लिए यह बहस का विषय नहीं है कि इन सभी राहतों व घोषणाओं के लिए भुगतान कौन करने वाला है। भारत के घरेलू मोर्चे पर कई चीजों पर नजर रखनी होगी। दो राज्यों के विधानसभा चुनावों का उल्लेख पहले ही किया गया है। सोलहवां वित्त आयोग इस वर्ष के अंत में अपनी सिफारिशों को अंतिम रूप देगा। क्या यह सरकार के तीसरे स्तर को सुनिश्चित धन प्रदान करेगा? कई राज्यों में नगर पालिकाओं और पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के चुनावों में काफी देरी हुई है जिससे स्थानीय शासन प्रभावित हुआ है।चूंकि भारत में व्यापार घाटा बढ़ गया है इसलिए नवनिर्वाचित ट्रम्प प्रशासन की डॉलर नीतियों के मजबूत होने की संभावना के कारण रुपये में गिरावट आने की आशंका है।
विदेशी प्रत्यक्ष निवेश बढ़ाने को लेकर चिंता बनी रहेगी। यह कई वर्षों से गिर रहा है। पूंजी का रिसाव व अमीर लोगों का दूसरे देशों में पलायन भी चिंता का विषय है। प्रौद्योगिकी के मोर्चे पर हम इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रसार, पेट्रोल के साथ इथेनॉल का अधिक सम्मिश्रण और शायद छोटे व मॉड्यूलर परमाणु रिएक्टरों की पायलट परियोजनाओं की शुरुआत देखेंगे। एक बड़े आर्थिक विकास, जैसे निजी पूंजीगत खर्च में वृद्धि और ग्रामीण मजदूरी में सुधार पर नजर रखनी होगी। शहरी खपत में सुस्ती को देखते हुए फरवरी में पेश होने वाले केंद्रीय बजट में बजटीय प्रोत्साहन की जरूरत पड़ सकती है। संक्षेप में कहें तो निवेश तथा विकास के बारे में अनिश्चितताओं से भरा, असमानता को बढ़ाने वाला, भू-राजनीति और संघर्षों से प्रभावित एवं एक ढीली मौद्रिक नीति द्वारा निर्देशित परिसंपत्ति बाजार में वृद्धि से भरा वर्ष हमारे सामने आने वाला है।
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