डिजिटल जनसुनवाई का हो बंदोबस्त
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंटरनेट क्रांति और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रसार ने संवादों के आदान-प्रदान की गति तेज कर दी है। यहां तक कि सरकारी महकमों के लिए भी यह बेहतरीन माध्यम बन गया है, बशर्ते कि इसका इस्तेमाल सकारात्मक रूप से हो। पिछले डेढ़ दशक से भी ज्यादा समय से विभिन्न सरकारी महकमों ने सूचना क्रांति के बेहतर इस्तेमाल का प्रयास किया है लेकिन अभी काफी-कुछ करना बाकी है। 



आम जनता से जुड़े कई महकमे सिर्फ अपनी वेबसाइट बनाने तक की ही खानापूर्ति कर पाए हैं। यह बात दूसरी है कि कई बार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जिम्मेदारों की आवश्यकता नहीं बल्कि मजबूरी बन जाते हैं। आम जनता से सीधे जुड़े सभी महकमों यथा- पुलिस, बिजली, पानी, नगरीय विकास से जुड़े स्थानीय निकायों व शहरों के विकास प्राधिकरणों से जुड़े जिम्मेदारों को भी ऐसी पहल करनी चाहिए। यदि संवाद का ऐसा तंत्र विकसित हो तो आम आदमी को छोटे-छोटे काम के लिए विभागों के चक्कर लगाने की मजबूरी से निजात मिल सकती है। ऐसा नहीं है कि नगर निगम व जेडीए जैसी संस्थाओं ने ऑनलाइन शिकायतें दर्ज कराने की व्यवस्था नहीं कर रखी हो। लेकिन इन्हें कौन देखता है और किस तरह से काम होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। 



सभी महकमों, यहां तक कि मुख्यमंत्री कार्यालय को मिलने वाली परिवेदनाओं तक के निस्तारण की व्यवस्था चुस्त-दुरुस्त हो तो लोगों की समस्याओं का समाधान आसानी से हो सकता है। जैसे-जैसे तकनीकी समाधान बढ़ रहे हैं, सरकारी तंत्र को अधिक पारदर्शी, जवाबदेह और सक्रिय करने की आवश्यकता भी बढ़ी है।

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