जनादेश का निहितार्थ

इलमा अजीम 
महाराष्ट्र व झारखंड में जनता ने सत्तारूढ़ गठबंधनों में ही विश्वास जताया है। हालांकि, दोनों राज्यों के मुद्दे व राजनीतिक परिदृश्य एक दूसरे से भिन्न हैं, लेकिन महाराष्ट्र में भाजपा नेतृत्व वाले महायुति गठबंधन की अप्रत्याशित जीत ने सबको चौंकाया है। इतनी बड़ी कामयाबी की उम्मीद शायद भाजपा गठबंधन को भी नहीं रही होगी। 




वहीं दूसरी ओर भले ही झारखंड में झामुमो के नेतृत्व वाले गठबंधन ने सत्ता बरकरार रखी हो, मगर महाराष्ट्र की महाविजय झारखंड के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण है, जिसके गहरे निहितार्थ हैं। महाराष्ट्र में ऐसी शानदार जीत की कल्पना राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार व उद्धव ठाकरे के होते हुए शायद ही किसी ने की हो। दरअसल, छह माह से कम समय पहले महा विकास अघाड़ी, जिसमें कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और शिवसेना के उद्धव ठाकरे धड़े ने लोकसभा चुनाव में भाजपा व उसके सहयोगियों को पछाड़ दिया था। ऐसे में विधानसभा चुनाव में गठबंधन की उम्मीदें बढ़ गई थीं। 

लेकिन अति आत्मविश्वास और दलों में फूट के कारण गठबंधन ने निराशाजनक प्रदर्शन किया।  वैसे महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन को ध्रुवीकरण का भी खासा लाभ मिला। उनकी सफलता में इसके अलावा शिवसेना व राकांपा में विभाजन का लाभ भी भाजपा को मिला। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में भाजपा गठबंधन के जो मुद्दे चले, वे झारखंड में निष्प्रभावी रहे। हेमंत सोरेन झारखंड की जनता को विश्वास दिलाने में कामयाब रहे कि वे अादिवासी हितैषी हैं। ‘एक हैं तो सेफ हैं’ का नारा तथा घुसपैठियों का मुद्दा झारखंड के लोगों को रास नहीं आया। कहीं न कहीं प्रवर्तन निदेशालय द्वारा कथित भ्रष्टाचार के आरोप में हेमंत सोरेन के खिलाफ हुई कार्रवाई उनके लिये सहानुभूति जगाने की वजह बनी। वहीं महिलाओं के खातों में गई एकमुश्त रकम ने उन्हें बड़ा संबल दिया। महिला कल्याण केंद्रित योजनाओं के चलते महिला वोटर महाराष्ट्र और झारखंड में निर्णायक साबित हुए।

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