भारत की आर्थिक चिंताएं

इलमा अजीम 
इस समय बढ़ते हुए रूस-यूक्रेन युद्ध और इजरायल-ईरान संघर्ष के कारण भारत की भी आर्थिक चिंताएं बढ़ गई हैं। ये चिंताएं बढ़ती कीमतों, शेयर बाजार में गिरावट, माल ढुलाई की लागत बढऩे, खाद्य वस्तुओं की महंगाई, भारत से चाय, मशीनरी, इस्पात, रत्न, आभूषण तथा फुटवियर जैसे क्षेत्रों में निर्यात आदेशों में कमी, निर्यात के लिए बीमा लागत में वृद्धि तथा युद्ध में उलझे हुए देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार में कमी के रूप में दिखाई दे रही हैं। स्थिति यह है कि वैश्विक शेयर बाजार के साथ-साथ भारत के शेयर बाजार पर भी असर पडऩा शुरू हुआ है। पश्चिम एशिया संकट और चीन से सरकारी प्रोत्साहन के दम पर बाजार चढऩे के मद्देनजर भारत के शेयर बाजार में कुछ विदेशी निवेशकों के द्वारा जोखिम वाली संपत्तियां बेची जा रही हैं और वे अपना बड़ी संख्या में निवेश निकाल रहे हैं। स्थिति यह है कि सेंसेक्स और निफ्टी के लिए अक्टूबर और नवंबर 2024 दो साल की बड़ी गिरावट के महीनों के रूप में दिखाई दे रहे हैं।



 पश्चिम एशिया संघर्ष के बीच निवेशक सुरक्षित निवेश के तौर पर सोने की खरीदी का भी रुख कर रहे हैं। इससे वैश्विक स्तर के साथ-साथ भारत में भी सोने की खपत और सोने की कीमतें बढ़ी हैं। इसमें कोई दो मत नहीं हैं कि पश्चिम एशिया में युद्ध के बढऩे पर भारतीय शेयर बाजार में तेज गिरावट और महंगाई वृद्धि का दौर निर्मित होते हुए दिखाई दे रहा है। लेकिन पश्चिम एशिया संघर्ष के बीच भी भारत के कई ऐसे मजबूत आर्थिक पक्ष हैं जिनसे भारत के आम आदमी और भारतीय अर्थव्यवस्था को अधिक नुकसान नहीं हो सकेगा। खास बात यह है कि इस समय भारत की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत बनी हुई है। भारत खाद्यान्न अतिशेष वाला देश है और देश के 80 करोड़ से अधिक कमजोर वर्ग के लोगों को निशुल्क खाद्यान्न वितरित किया जा रहा है। पश्चिम एशिया संघर्ष के बीच भी भारत पर दुनिया का आर्थिक विश्वास बना हुआ है। नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक 21 नवंबर तक भारत के पास 650 अरब डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार है, जिससे भारत किसी भी आर्थिक जोखिम का सरलतापूर्वक सामना करने में सक्षम है। यदि दुनिया के युद्धग्रस्त देशों में युद्ध और तेजी से बढ़ेगा, तो कच्चे तेल के वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढऩे का सिलसिला शुरू हो सकता है और अब यदि कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी, तो दुनियाभर में कई वस्तुओं के दाम बढऩे के साथ-साथ भारत में भी कीमतें बढऩे का सिलसिला शुरू हो सकता है। यह भी चिंताजनक है कि अभी देश में महंगाई बढऩे का रुझान स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। 


14 नवंबर को राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) के द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर में थोक महंगाई दर बढक़र 2.36 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो 4 महीने का उच्चतम स्तर है। बीते महीने खाद्य पदार्थों, विशेष रूप से सब्जियों और विनिर्मित वस्तुओं की कीमतें महंगी हो गई हैं। ऐसे में बहुआयामी रणनीतिक प्रयासों से देश के आमजन व देश की अर्थव्यवस्था को पश्चिम एशिया संघर्ष और विस्तारित होते रूस-यूक्रेन युद्ध के दुष्प्रभावों से बहुत कुछ बचाया जा सकेगा। भारत को किसी ठोस योजना पर काम करना चाहिए।

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