घाटी में नई शुरुआत
इलमा अजीम 
जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस व कांग्रेस गठबंधन को निर्णायक जीत मिली है। निश्चय ही पांच साल पुराने इस केंद्र शासित प्रदेश के लिये यह एक नई शुरुआत है। जम्मू-कश्मीर में दस साल बाद हुए विधानसभा चुनावों में मतदाताओं ने खंडित जनादेश देने के बजाय एक स्थिरता को चुना। उन्होंने राजनीतिक जोड़-तोड़ की किसी भी संभावना को खारिज कर दिया।
अब विजयी गठबंधन और केंद्र सरकार के लिये असली परीक्षा की शुरुआत हो रही है। इसमें सत्ता सौंपने के लिये बातचीत की प्रक्रिया भी शामिल होगी। जनादेश के बाद केंद्रशासित प्रदेश में विश्वास बहाली प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि उपराज्यपाल व निर्वाचित सरकार के बीच किसी तरह का टकराव पैदा न हो। भरोसा किया जाना चाहिए कि जनादेश का सम्मान किया जाएगा। यह अच्छी बात है कि केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति के बाद अब स्थितियां सामान्य हुई हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी मतदाताओं ने उत्साह से मतदान में भाग लिया था। वैसा ही उत्साह इस विधानसभा चुनाव के दौरान भी देखा गया। यह अच्छा है कि जम्मू-कश्मीर में जिस त्रिशंकु विधानसभा के कयास लगाए जा रहे थे, वास्तविकता ठीक उसके विपरीत रही। जम्मू-कश्मीर के मतदाताओं ने एक तरह से पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी को सिरे से खारिज कर दिया। यहां तक कि पीडीपी सुप्रीमो महबूबा मुफ्ती की बेटी भी चुनाव हार गई। भाजपा को जम्मू में जरूर बढ़त मिली मगर घाटी में वह खाता नहीं खोल सकी। बहरहाल, नई सरकार बनाने के लिये मतदाताओं द्वारा दिए गए संदेश को संवेदनशील ढंग से समझने की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि राजनीतिक तकरार से हटकर कोशिश कश्मीरी जनमानस के मन को पढ़ने की हो। ध्यान रखा जाए कि वहां के लोग वास्तव में क्या चाहते हैं। निश्चित रूप से जम्मू-कश्मीर के लोग शेष देश की तरह महंगाई व बेरोजगारी की समस्या से दो चार हैं। उनकी समस्याओं का तार्किक समाधान तलाशना चाहिए। 

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