महंगाई पर चुनौती बढ़ी
इलमा अजीम
इन दिनों ईरान और इस्राइल सहित पश्चिम एशिया में बढ़ते संघर्ष तथा रूस-यूक्रेन युद्ध के विस्तारित होने से भारत की आर्थिक चुनौतियां बढ़ गई हैं। ये चुनौतियां कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों, शेयर बाजार में गिरावट, माल ढुलाई की लागत बढ़ने, खाद्य वस्तुओं की महंगाई, भारत से चाय, मशीनरी, इस्पात, रत्न, आभूषण तथा फुटवियर जैसे क्षेत्रों में निर्यात आदेशों में कमी, निर्यात के लिए बीमा लागत में वृद्धि तथा इस्राइल और ईरान के साथ द्विपक्षीय व्यापार में कमी के रूप में दिखाई दे रही हैं। स्थिति यह है कि वैश्विक शेयर बाजार के साथ-साथ भारत के शेयर बाजार पर भी असर पड़ना शुरू हुआ है। पश्चिम एशिया संकट और चीन से सरकारी प्रोत्साहन के दम पर बाजार चढ़ने के मद्देनजर भारत के शेयर बाजार में कुछ विदेशी निवेशकों द्वारा जोखिम वाली संपत्तियां बेची जा रही हैं और वे अपना कुछ निवेश निकाल रहे हैं। स्थिति यह है कि सेंसेक्स और निफ्टी के लिए अक्तूबर, 2024 का पहला सप्ताह 4.5 फीसदी के नुकसान के साथ दो साल की सबसे बड़ी गिरावट का सप्ताह रहा है। पश्चिम एशिया संघर्ष के बीच निवेशक सुरक्षित निवेश के तौर पर सोने की खरीद का भी रुख कर रहे हैं। इससे भारत में भी सोने की खपत और सोने की कीमत बढ़ने लगी है। अब यदि कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ेंगी तो दुनियाभर में कई वस्तुओं के दाम बढ़ने के साथ-साथ भारत में भी कीमतें बढ़ने का सिलसिला शुरू हो सकता है। चूंकि ईरान दुनिया के सबसे बड़ा कच्चा तेल उत्पादकों में से एक है और यह देश पश्चिम एशिया के संवेदनशील इलाकों में स्थित है।
ऐसे में ईरान के तेल बाजार में अस्थिरता से कच्चे तेल की कीमतें तेजी से बढ़ने पर पेट्रोल, डीजल और अन्य पेट्रोलियम उत्पाद महंगे होने लगेंगे। इसका असर 80 फीसदी आयात करने वाले भारत पर विशेष रूप से पड़ेगा। यह बात भी महत्वपूर्ण है कि ईरान और इस्राइल के बीच युद्ध का अप्रत्यक्ष प्रभाव भारतीय फार्मास्युटिकल उद्योग पर भी पड़ सकता है, क्योंकि भारत अभी भी ज्यादातर दवाओं के लिए कच्चे माल का बड़ा हिस्सा विदेश से आयात करता है। ऐसे में दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी की आशंका होगी।
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