शिखर सम्मेलन के बहाने

 इलमा अजीम 
शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का शिखर सम्मेलन इस्लामाबाद में सम्पन्न हो गया। एससीओ की यह 23वीं बैठक थी। यह सम्मेलन भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए महत्त्वपूर्ण संदेश लिए रहा। हालांकि, दोनों देशों के बीच कोई औपचारिक बातचीत नहीं हुई लेकिन विदेश मंत्री एस. जयशंकर और मेजबान देश के मुखिया के इशारे भविष्य के लिए सकारात्मक नजर आए। भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे जयशंकर ने अपनी यात्रा से कुछ दिन पहले यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत-पाकिस्तान सम्बंधों पर कोई द्विपक्षीय वार्ता नहीं होगी। उन्होंने भाषण में अपनी बात रखी। उन्होंने सीमा-पार आतंकवाद की तरफदारी करने वालों को संदेश दिया कि आतंकवाद क्षेत्रीय सहयोग की राह में सबसे बड़ी बाधा है।



 यह पाकिस्तान को निशाने पर रखते हुए स्पष्ट संदेश था कि वह भारत में विशेषकर जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के लिए जिम्मेदार है। वहां हजारों लोगों की जान गई है और सांप्रदायिक सद्भाव के पारंपरिक और सांस्कृतिक लोकाचार को चोट पहुंची है। आतंकवाद को राज्य की नीति बनाने से क्षेत्र में आपसी सहयोग बढऩे की संभावना नहीं है और किसी पुरस्कार की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। इस तरह, विदेश मंत्री का यह संदेश बेहद स्पष्ट और दो टूक था, पर पाकिस्तान का नाम लेने से उन्होंने परहेज किया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को पता है कि सीमापार आतंकवाद कितना खतरनाक है क्योंकि अपने भाषण में उन्होंने अफगानिस्तान का नाम लिया और उस पर अपने देश में आतंकवाद को निर्यात करने का आरोप लगाया। जाहिर है, संदेश स्पष्ट है कि कश्मीर मुद्दा खत्म हो गया है। इस्लामाबाद में लंच पर राजनयिक उद्देश्य हासिल हो गया है। 

जयशंकर भी अपनी यात्रा से खुश थे। इसका प्रमाण तब मिला जब उन्होंने सभी शिष्टाचार और आतिथ्य के लिए पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ व विदेश मंत्री इशाक डार को धन्यवाद दिया। यह रुख भारत और पाकिस्तान के बीच निकटता बढऩे का संकेत माना जा सकता है।

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