समस्या पराली की
 इलमा अजीम 
सुप्रीमकोर्ट की फटकार के बाद भी पराली जलाने का सिलसिला थम नहीं रहा है। प्रभावी कदम न उठाने पर कोर्ट ने पंजाब व हरियाणा सरकार को फटकार लगाई है। अदालत ने कहा कि सरकारों ने पराली जलाने के दोषियों से नाममात्र का ही जुर्माना वसूला, जिसके चलते इसे जलाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। यह विडंबना ही है कि प्रदूषण के मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति तो लगातार होती रही है लेकिन पराली व प्रदूषण बढ़ाने वाले अन्य कारकों पर रोक लगाने के लिये कोई ईमानदार प्रयास होते नजर नहीं आते। अदालत ने गत वर्ष भी कहा था कि पराली जलाने की घटनाओं पर रोक लगाने के लिये सतत निगरानी की जानी चाहिए। इसके विपरीत दिल्ली सरकार, हरियाणा व पंजाब में पराली का मुद्दा राजनीति के रंग में रंगता रहा है। यही वजह है कि बीते साल की तरह ही इसी मौसम में फिर से प्रदूषण की समस्या विकट होती जा रही है। फिर ठंड का मौसम आते ही भौगोलिक कारणों से प्रदूषण विकराल रूप लेने लगता है। दिवाली पर तो पटाखों पर प्रतिबंध के बावजूद प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर हो जाती है। यह तंत्र की काहिली का ही नतीजा है, जिसके चलते दिल्ली दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित राजधानी का दर्जा हासिल कर लेती है। दरअसल, प्रदूषण के एक घटक पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि की वजह भी वोटों की राजनीति ही है। सरकारें पराली जलाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने से बचती रही हैं।


 उन्हें अपने वोट बैंक के खिसकने की चिंता सताती रहती है। हाल ही में वायु गुणवत्ता आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि गत पंद्रह से पच्चीस सितंबर के मध्य पंजाब में पिछले साल इन दिनों के मुकाबले में दस गुना अधिक पराली जलाने की घटनाएं हुई हैं। सवाल यह है कि हर साल सितंबर से नवंबर के बीच बढ़ने वाली पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश क्यों नहीं लगाया जा रहा है? 

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