ऐसे नहीं रुकेंगे अपराध
इलमा अजीम
देश के नेताओं ने समस्याओं का आसान रास्ता तलाश कर रखा है। जब भी किसी समस्या से सामना हो तो कानून बना कर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर लो। समस्या की जड़ तक कोई भी राजनीतिक दल और सरकारें नहीं जाना चाहती। ऐसा नहीं है कि समस्याओं का स्थायी समाधान नहीं हो सकता, किन्तु वहां तक पहुंचने और व्यावहारिक समाधान ढूंढने में पापड़ बेलने पड़ते हैं। पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने महिला चिकित्सक से बलात्कार के बाद हत्या के मामले में वही किया है जो अब तक ऐसे मामलों में दूसरे राज्य या केंद्र सरकार करती रही हैं। मसलन कानून बना कर जिम्मेदारी पूरी कर ली। गौरतलब है कि निर्भया कांड के बाद कानून को बहुत सख्त कर दिया गया था। रेप की परिभाषा भी बदल दी थी, ताकि महिलाओं के खिलाफ अपराध में कमी लाई जा सके। पहले जबरदस्ती या असहमति से बनाए गए संबंधों को ही रेप के दायरे में लाया जाता था। लेकिन इसके बाद 2013 में कानून में संशोधन कर इसका दायरा बढ़ाया गया। इतना ही नहीं, जुवेनाइल कानून में संशोधन किया गया था। इसके बाद अगर कोई 16 साल और 18 साल से कम उम्र का कोई किशोर जघन्य अपराध करता है तो उसके साथ वयस्क की तरह ही बर्ताव किया जाएगा। हालांकि, इन सबके बावजूद सुधार नहीं हुआ है। निर्भया कांड (2012) के बाद भारत में कई चर्चित बलात्कार की घटनाएं हुई हैं।
उन्नाव जिले में एक 17 वर्षीय लडक़ी के साथ बलात्कार और हत्या की घटना सामने आई। हाथरस जिले में एक 19 वर्षीय दलित लडक़ी के साथ सामूहिक बलात्कार और अत्यंत बर्बरता की गई। पीडि़ता की मृत्यु के बाद, उसके शव को परिवार की अनुमति के बिना रात के समय दफनाया गया। मध्य प्रदेश के मुरैना जिले में एक महिला के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना सामने आई। पीडि़ता की शिकायत के बावजूद, पुलिस ने समय पर कार्रवाई नहीं की, जिससे व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। हैदराबाद में एक महिला वेटरिनरी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने व्यापक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया। गौरतलब है कि भारत में हर घंटे 3 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं, यानी हर 20 मिनट में बलात्कार की एक घटना। देश में रेप के मामलों में 96 प्रतिशत से ज्यादा आरोपी महिला को जानने वाले होते हैं।
रेप के मामलों में 100 में से 27 आरोपियों को ही सजा होती है, बाकी बरी हो जाते हैं। दरअसल नेताओं और सरकारों के इरादों में कमी है। देश में महिलाओं की सामूहिक तरक्की, पर्याप्त शिक्षा, बुनियादी सुविधाएं, रोजगार और अन्य सुविधाओं में इजाफा नहीं होगा, तब तक निर्भया जैसी घटनाओं पर सिवाय चीख-पुकार मचाने से कुछ नहीं होगा।
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