पैंक्रियाटिक कैंसर का खतरा,जल्दी पहचान से बेहतर इलाज संभव
मेरठ।पैंक्रियाटिक कैंसर, जिसे अक्सर "साइलेंट किलर" कहा जाता है, सबसे घातक और मुश्किल कैंसरों में से एक है। यह कैंसर शुरुआत में कोई खास लक्षण नहीं देता, जिससे इसे जल्दी पकड़ना मुश्किल हो जाता है। यही कारण है कि इसका पता अक्सर तब चलता है जब यह काफी फैल चुका होता है, जिससे इलाज के मौके भी कम हो जाते हैं।
पैंक्रियाटिक कैंसर के शुरूआती लक्षण दिखाई नहीं देते क्योंकि पैनक्रियास पेट के अंदर गहराई में स्थित होता है। मरीजों को जॉन्डिस, पेट दर्द और वजन कम होने जैसे लक्षण तब महसूस होते हैं जब कैंसर फैल चुका होता है। इस वजह से 5 साल की सर्वाइवल दर 10% से भी कम होती है।
यह कैंसर बहुत तेजी से फैलता है और लीवर, फेफड़ों और दूसरे अंगों तक जल्दी पहुंच जाता है, जिससे इसे रोकना मुश्किल हो जाता है। इलाज के तौर पर सर्जरी सबसे बेहतर विकल्प है, लेकिन अधिकतर मरीज सर्जरी के लायक नहीं होते क्योंकि कैंसर का पता बहुत देर से चलता है। पैनक्रियास के पास बड़ी नसों की वजह से सर्जरी और मुश्किल हो जाती है।
डॉ. नीरज चौधरी, डायरेक्टर, रोबोटिक और लेप्रोस्कोपिक जीआई-एचपीबी सर्जरी और ऑन्कोलॉजी विशेषज्ञ, यथार्थ हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा ने कहा, "इस कैंसर का समय पर पता लगाना बेहद जरूरी है, क्योंकि जब तक लक्षण सामने आते हैं, तब तक यह अक्सर फैल चुका होता है। लक्षणों की कमी के कारण इसे जल्दी पकड़ पाना मुश्किल हो जाता है, जो इलाज को चुनौतीपूर्ण बनाता है। समय पर सही जांच और जागरूकता ही इस गंभीर बीमारी से निपटने का सबसे प्रभावी तरीका है।"
पैंक्रियाटिक कैंसर का डायबिटीज और मोटापे से गहरा संबंध है। कई मामलों में, कैंसर से पहले ही मरीजों को टाइप 2 डायबिटीज का पता चल जाता है, जो कैंसर के होने का संकेत हो सकता है। मोटापा और पुरानी पैंक्रियाटाइटिस भी इसके प्रमुख जोखिम कारक माने जाते हैं।
भारत में पैंक्रियाटिक कैंसर की दर तेजी से बढ़ रही है। हालांकि यह कैंसर दूसरे कैंसरों के मुकाबले कम होता है, लेकिन जीवनशैली में बदलाव, बढ़ती डायबिटीज और मोटापे की वजह से इसके मामलों में बढ़त हो रही है। इसके बारे में जागरूकता की कमी भी एक बड़ी समस्या है, जिससे मरीज देर से इलाज के लिए जाते हैं।
इस बीमारी के लक्षण और जोखिमों के बारे में जागरूकता बढ़ाना जरूरी है, ताकि लोग समय पर डॉक्टर से परामर्श ले सकें। विशेष रूप से, वे लोग जिनका परिवारिक इतिहास है, जिन्हें लंबे समय से डायबिटीज है या जो पुरानी पैंक्रियाटाइटिस से ग्रस्त हैं, उन्हें नियमित जांच करानी चाहिए।
पैंक्रियाटिक कैंसर का इलाज बेहद चुनौतीपूर्ण है, लेकिन शुरुआती पहचान और इलाज में आ रही नई तकनीकों की मदद से भविष्य में इसके इलाज के बेहतर और अधिक प्रभावी तरीके विकसित किए जा सकते हैं। अगर समय पर इसका पता लगाया जाए और बेहतर तकनीकों का इस्तेमाल हो, तो मरीजों के लिए जीवन की संभावनाएं और अधिक हो सकती हैं।
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