बेरोजगारी से स्वरोजगार
इलमा अजीम
आवधिक श्रम बल सर्वे रपट के अनुसार, देश में बेरोजगारी घट रही है और मौजूदा दर 3.2 फीसदी पर ठहर गई है। यह डाटा सरकारी है, लिहाजा उसे ही विश्वसनीय आधार मान कर आकलन किए जाते हैं। भारत में बेरोजगारी दर अमरीका, यूरोप, चीन, अरब देश की तुलना में सबसे कम है, लेकिन आज भी गोवा, पंजाब, राजस्थान, केरल आदि राज्यों में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से अब भी अधिक है। यदि समुदायों का डाटा देखा जाए, तो अल्पसंख्यक सिखों में सबसे अधिक बेरोजगारी है। हिंदू और सवर्ण भी काफी बेरोजगार हैं। हालांकि बीते छह सालों में बेरोजगारी दर आधी रह गई है। सुखद यह है कि 25 राज्यों और संघशासित क्षेत्रों में काम करने वालों अथवा काम तलाश करने वालों की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। यह दर सिक्किम में सर्वाधिक 60.5 फीसदी है। छत्तीसगढ़ में यह दर 51.3 फीसदी है, जबकि गुजरात और महाराष्ट्र में क्रमश: 45.2 फीसदी और 44.5 फीसदी है। राजस्थान और पंजाब में कामकाजी आबादी की दर 40 फीसदी से अधिक है, लेकिन बिहार, उप्र, झारखंड जैसे राज्यों में यह दर सबसे कम है। जब आवधिक श्रम बल सर्वे की रपट का अध्ययन करते हैं, तो महिलाओं की श्रम-बाजार में हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। इसी के साथ स्व-रोजगार का रुझान भी बढ़ा है।
आवधिक श्रम बल सर्वे रपट के अनुसार, देश में बेरोजगारी घट रही है और मौजूदा दर 3.2 फीसदी पर ठहर गई है। यह डाटा सरकारी है, लिहाजा उसे ही विश्वसनीय आधार मान कर आकलन किए जाते हैं। भारत में बेरोजगारी दर अमरीका, यूरोप, चीन, अरब देश की तुलना में सबसे कम है, लेकिन आज भी गोवा, पंजाब, राजस्थान, केरल आदि राज्यों में बेरोजगारी राष्ट्रीय औसत से अब भी अधिक है। यदि समुदायों का डाटा देखा जाए, तो अल्पसंख्यक सिखों में सबसे अधिक बेरोजगारी है। हिंदू और सवर्ण भी काफी बेरोजगार हैं। हालांकि बीते छह सालों में बेरोजगारी दर आधी रह गई है। सुखद यह है कि 25 राज्यों और संघशासित क्षेत्रों में काम करने वालों अथवा काम तलाश करने वालों की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक है। यह दर सिक्किम में सर्वाधिक 60.5 फीसदी है। छत्तीसगढ़ में यह दर 51.3 फीसदी है, जबकि गुजरात और महाराष्ट्र में क्रमश: 45.2 फीसदी और 44.5 फीसदी है। राजस्थान और पंजाब में कामकाजी आबादी की दर 40 फीसदी से अधिक है, लेकिन बिहार, उप्र, झारखंड जैसे राज्यों में यह दर सबसे कम है। जब आवधिक श्रम बल सर्वे की रपट का अध्ययन करते हैं, तो महिलाओं की श्रम-बाजार में हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। इसी के साथ स्व-रोजगार का रुझान भी बढ़ा है।
भारत में स्व-रोजगार की परिभाषा और क्षेत्र ही सवालिया हैं। रेहड़ी-पटरीवालों से लेकर परचून के दुकानदार, कृषि और लघु, सूक्ष्म उद्यमी सभी स्व-रोजगार की परिधि में आते हैं, लिहाजा उनकी आय अलग-अलग है। स्व-रोजगार के तहत जो स्थितियां लघु और सूक्ष्म उद्योगों की चीन में है, उसकी तुलना में भारत काफी पीछे है। रपट खुलासा करती है कि यदि एक नौकरीपेशा व्यक्ति को 21,000 रुपए से अधिक माहवार वेतन मिलता है, तो स्व-रोजगार वाले की औसतन आय 17,000 रुपए से कुछ अधिक है।
जाहिर है कि कोई व्यक्ति नियमित और निश्चित आय वाली नौकरी छोड़ कर कम आय वाले और बेहद असुरक्षित स्व-रोजगार में जाना पसंद नहीं करेगा। प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार स्व-रोजगार को प्रोत्साहन देती रही है, लेकिन उसकी परिस्थितियां बदलनी चाहिए, ताकि स्व-रोजगार से भी बेहतर आमदनी प्राप्त की जा सके।
स्वतत्र पत्रकार ,मेरठ।
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