सोची-समझी रणनीति
इलमा अजीम 

अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा सोची-समझी रणनीति के तहत ही दिया है, ताकि आगामी विधानसभा चुनाव को अपनी ईमानदारी के जनमत संग्रह के रूप में दर्शा सकें। उनका मकसद भाजपा सरकार द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार के आरोपों का मुकाबला करने तथा खुद को राजनीतिक प्रतिशोध के शिकार के रूप में दिखा जनता की सहानुभूति अर्जित करना भी है। निस्संदेह, जनता से ईमानदारी का प्रमाण पत्र हासिल करने की योजना उनकी दीर्घकालिक रणनीति का हिस्सा जान पड़ती है। वहीं तय समय से तीन माह पहले दिल्ली में विधानसभा चुनाव कराने की मांग करके उन्होंने जता दिया है कि आप चुनाव अभियान के लिये तैयार है। दरअसल, केजरीवाल वर्ष 2014 के इस्तीफे के दांव को दोहराना चाहते हैं, जिसके बाद 2015 में आम आदमी पार्टी को भारी जीत मिली थी। लेकिन इस बार की स्थितियां खासी चुनौतीपूर्ण व जोखिमभरी हैं। 



निस्संदेह, यह जुआ मुश्किल भी पैदा कर सकता है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नहीं मिली थी। जिसे विपक्ष ने पार्टी की घटती लोकप्रियता के रूप में दर्शाया था। दरअसल,बुनियादी प्रशासनिक ढांचे की खामियां व भाजपा के लगातार हमलों ने आप को बचाव की मुद्रा में ला खड़ा कर दिया था। वहीं दूसरी ओर आप सरकार की कल्याणकारी योजनाएं अभी भी मतदाताओं को पसंद आ रही हैं। अब आने वाला वक्त बताएगा कि इस्तीफे का पैंतरा आप को राजनीतिक रूप से कितना रास आता है। वहीं दूसरी ओर कयास लगाए जा रहे हैं कि केजरीवाल के इस पैंतरे से तेज हुई राजनीतिक सरगर्मियों का असर पड़ोसी राज्य हरियाणा में होने वाले विधानसभा चुनाव पर भी दिख सकता है। चुनाव में इंडिया गठबंधन से मुक्त आप राज्य की सभी सीटों पर ताल ठोक रही है।


 जिसका कुछ लाभ भाजपा को भी हो सकता है। ये आने वाला वक्त बताएगा कि चुनौतियों से जूझती पार्टी अपना जनाधार किस हद तक मजबूत कर पाती है। वहीं दूसरी ओर जनता की अदालत में दिल्ली सरकार की फ्री पानी-बिजली व सरकारी बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा कराने की नीति की भी परीक्षा होनी है।

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