मानवता के तकाजे कब तक निभाएगा भारत
- प्रताप सिंह पटियाल
प्राचीन काल से भारत अमन व इत्तेहाद का पक्षधर रहा है। इनसानियत की पैरवी करने वाली तहजीब, शांति, सद्भाव तथा शिष्टाचार भारतीय संस्कृति के मूल लक्षण हैं। ‘जियो और जीने दो’ अर्थात ‘जीवन जीना अधिकार तथा समस्त प्राणियों को जीने देना कत्र्तव्य’। मान्यता है कि यह सिद्धांत जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर ‘महावीर स्वामी’ के उपदेशों का हिस्सा है, जो कि जंगी जुनून में मदहोश होकर विश्व को तीसरी आलमी जंग के मुहाने पर ले जा रहे देशों तथा दहशतगर्दी की हिमायत करने वाले मुल्कों के लिए एक प्रकाशमान दर्शन है।
मौजूदा दौर में मजहबी कट्टरवाद तथा आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे वैश्विक स्तर पर एक बड़ा खतरा बन चुके हैं। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण मौजूद हैं जब युद्ध, मजहबी उत्पीडऩ व आतंकवाद जैसी भीषण आपदाओं के कारण अपना मुल्क छोडऩे वाले बेगुनाह लोगों के लिए भारत ने हमेशा मसीहा की भूमिका निभाई है। यहां तक कि हिंदोस्तान से गद्दारी करने वाले लोगों के प्रति भी भारत का नजरिया नैतिकता का ही रहा है। पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखने वाले ‘जोगिंद्रनाथ मंडल’ अविभाजित हिंदोस्तान के दौर में मुस्लिम लीग के सदस्य थे। उन मोहतरम ने भारत के विभाजन में अपना शिद्दत भरा किरदार अदा किया था। बटवारे के दौर में जोगिंद्रनाथ मंडल ने जातिवाद की पुरजोर पैरवी करके असम राज्य के सिलहट क्षेत्र को पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा बनाने में अहम भूमिका निभाई थी। नतीजतन सिलहट अब बांग्लादेश में मौजूद है।
विभाजन के बाद जोगिंद्रनाथ मंडल दलित व पिछड़े वर्ग का रहनुमां बनकर पाकिस्तान चले गए थे। पाकिस्तान के गर्वनर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने जोगिंद्रनाथ मंडल को पाक हुकूमत की काबीना में ‘कानून व श्रम’ मंत्री नियुक्त कर दिया। मगर वजूद में आते ही पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों पर मजहब के नाम पर तशद्दुद का दौर शुरू हो गया था। कत्लोगारत के उस खौफनाक मंजर से जब पाकिस्तान का धर्मनिरपेक्ष चेहरा बेनकाब हुआ, तो पाक में भाईचारे के पैरोकार बनकर गए जोगिंद्रनाथ मंडल ने पाक वजीरे आजम ‘लियाकत अली’ को अपना इस्तीफा सौंप दिया था।
पाकिस्तान के मजहबी जुनून के आगे बेबस होकर जोगिंद्रनाथ मंडल को दोबारा भारतभूमि पर ही शरण लेनी पड़ी थी। पाकिस्तान के वजूद में आने से पहले ही जिन्ना को अपने मुल्क के लिए ‘कौमी तराना’ की जरूरत महसूस हो चुकी थी। उस वक्त जिन्ना ने उर्दू सहाफत के नामवर शायर ‘जगन्नाथ आजाद’ से पाकिस्तान का कौमी तराना लिखने की गुजारिश की। जगन्नाथ आजाद द्वारा लिखा गया पाकिस्तान का कौमी तराना 14 अगस्त 1947 की रात को रेडियो ‘लाहौर’ से पहली बार नसर हुआ था। लेकिन सितंबर 1948 में मोहम्मद अली जिन्ना की वफात के बाद जगन्नाथ आजाद द्वारा लिखे गए पाक कौमी तराने पर मजहबी गर्दिश का साया पड़ गया।
पाकिस्तान के मजहबी रहनुमाओं को एक गैर इस्लामी शायर का लिखा कौमी तराना रास नहीं आया। नतीजतन जिन्ना का मुस्तहब पाक कौमी तराना बदल दिया गया। मजहबी हिकारत से आहत होकर जगन्नाथ आजाद ने अपने पूर्वजों की पुश्तैनी विरासत को अपनी जन्मभूमि मियांवली में त्याग कर पाकिस्तान को अलविदा कह कर भारत में ही शरण ली थी। अंग्रेज वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा सन् 1905 में बंगाल विभाजन की अजीयत भरी कारकर्दगी से मायूस होकर ‘रविंद्रनाथ टैगोर’ ने बंगाल में इत्तेहाद का माहौल बरकरार रखने के लिए ‘आमार सोनार बांग्ला’ नामक गीत की रचना की थी। उस दौर में ‘बंगदर्शन’ नामक पत्रिका में प्रकाशित वो नगमा काफी लोकप्रिय हुआ था।
भारत के रहमो करम से सन् 1971 में वजूद में आए बांग्लादेश ने अपनी ‘यौम-ए-तासीस’ के वक्त टैगोर के उस नगमें को अपना कौमी तराना तस्लीम कर लिया था, लेकिन ‘आमार सोनार बांग्ला’ सन् 1975 में ही मजहबी कट्टरपंथ का शिकार हो गया। बांग्लादेश की मजहबी जमातों के आगे बेबस होकर राष्ट्रपति ‘मुश्ताक अहमद’ द्वारा गठित की गई कमेटी के मजहबी रहनुमां काजी नसरूल इस्लाम ने टैगोर के लिखे तराने को रुखसत करने का मश्विरा पेश कर दिया था। बांग्लादेश की मौजूदा मजहबी जमातें भी उसी तहरीर को दोहरा रही हैं। अपने चर्चित उपन्यास ‘लज्जा’ के जरिए बांग्लादेश के मजहबी कट्टरपंथ को बेनकाब करने वाली लेखिका ‘तस्लीमा नसरीन’ को सन् 1994 में अपना मुल्क बांग्लादेश छोडऩा पड़ा। वहां की कट्टरपंथी जमातों तथा कई आतंकी संगठनों ने तस्लीमा नसरीन के खिलाफ मौत का फरमान जारी कर दिया था। तस्लीमा नसरीन ने सन् 2004 से भारत में शरण ली है। बांग्लादेश में हिंसक कारवाईयों से हालात इस कदर बेकाबू हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के लाखों लोग भारत में शरण लेने को आमादा हैं। 1980 के दशक में श्रीलंका में गृह युद्ध के कारण हजारों तमिल शरणार्थियों को भारत के दक्षिणी राज्यों में पनाह दी गई। अफगानिस्तान पर सन् 1979 में सोवियत आक्रमण तथा तालिबान की हुकूमत के दौर में अस्थिरता का माहौल पैदा होने से हजारों अफगान नागरिक भी भारत में शरण लेने को मजबूर हुए। नेपाल, तिब्बत व भूटान जैसे देशों की एक बड़ी आबादी भारत में निवास करती है। दूसरे मुल्कों की स्वतंत्रता को कायम रखने व अकलियतों के हकूक की आवाज भारत हमेशा बुलंद करता है।
मजहब की रहनुमाई करने वाले कई देश हैं, लेकिन जातिवाद व मजहबी हिकारत के कारण बेघर हो रहे लोगों को शरण देने की जहमत कोई भी मुल्क नहीं उठाता। बहरहाल कई देशों में आतंक व मजहबी उन्माद का शिकार होकर बेवतन हो रहे मजलूमों को शरण देकर भारत एक मुद्दत से मानवता के तकाजे निभा रहा है। लेकिन पड़ोसी मुल्कों पर चीन का दबदबा तथा विदेशी खूफिया एजेंसियों की बढ़ती पैठ से उत्पन्न माहौल भारत की सुरक्षा को सीधी चुनौती है। अत: एटमी कूवत से लैस व विश्व की चौथी ताकतवर सैन्यशक्ति की हैसियत रखने वाले भारत को अपनी सैन्य ताकत का पैगाम भी देना होगा। पड़ोसी मुल्कों में भारत विरोधी गतिविधियां देश के हित में नहीं हैं।
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