चरित्र निर्माण पर हो ध्यान
इलमा अजीम
संवेदना का रिश्ता केवल साहित्य और कला की दुनिया से ही नहीं होता, उसका संबंध हर उस व्यक्ति से है जो चिन्तनशील है, मानवीय है और दूसरों की पीड़ा को कहीं न कहीं महसूस करता है। संवेदना का तात्पर्य ही है पर अनुभूति और वेदना को अनुभव करना। अफसोस है कि ऐसी घृणित घटनाएं बढ़ती चली जा रही हैं जिनसे हमको अत्यंत शर्मसार होना पड़ रहा है। अभी हाल ही कोलकाता में महिला रेजिडेंट डॉक्टर की बलात्कार के बाद हत्या का मामला हो या कुछ माह पूर्व आंध्रप्रदेश में नाबालिग लड़की का उसके नाबालिग साथियों के द्वारा बलात्कार और फिर रहस्य खुल जाने के भय से हत्या की वारदात, संवेदनहीन होते समाज की ही निशानी है। मणिपुर में सैकड़ों की भीड़ द्वार निर्वस्त्र महिलाओं का जुलूस निकालने की घटना और वहशी व्यवहार भी यही संकेत देता है।
आखिर हम किस ओर जा रहे हैं? एक तरफ हम सभ्यता का दावा करते हैं, सुसंस्कृत होने का उद्घोष करते हैं दूसरी ओर दंगों में शैतान बन जाते हैं। मनुष्य जैसे-जैसे सभ्यता की सीढिय़ां चढ़ता गया उसकी संवेदना का दायरा बढ़ता गया। परिवार, पड़ोस, गांव- मोहल्ले से लेकर पशु-पक्षी और आहिस्ता-आहिस्ता संपूर्ण विश्व उसकी संवेदनशीलता के घेरे में आते गए। हम संवेदना का यह हरित पौधा जीवित रखें और सहिष्णुता के दीपक को जलाए रखें ताकि अज्ञानता और अंधकार का फैलाव रुक सके। चिंता की बात यह है कि परस्पर घृणा और हिंसा का कारोबार बढ़ गया है। आजकल ईष्र्या, द्वेष, परनिंदा, झूठी प्रशस्ति और स्वार्थ पर जोर है। नैतिकता गायब हो चुकी है स्कूलों के पाठ्यक्रम से नैतिक शिक्षा गायब है। हर तरफ धन का बोलबाला है, वह कैसे आया है इससे किसी को कोई मतलब नहीं है। साधन की पवित्रता पर किसी का ध्यान ही नहीं है, सभी का उत्थान किसी की चिंता का विषय नहीं । एकल परिवार बढ़ रहे हैं , संयुक्त परिवार टूट रहे हैं। विवाह नामक संस्था खतरे में है। इससे व्यक्ति एकाकी, कुंठित और मनोरोग से ग्रस्त हो रहा है। संबंधों का सम्मान जैसे भाव और मूल्य गायब हो रहे हैं। ऐसे विध्वंसकारी मनुष्य संवेदनहीन हैं और स्वकेंद्रित हैं । ऐसे व्यक्ति व्यापक सोच नहीं रखते। समाज में आर्थिक विषमता की खाई लगातार बढ़ रही है। राजनीतिक दलों को मात्र वोट की फिक्र है। अच्छा इंसान बनाने की किसी को चिंता नहीं है, न समाज की विषमताओं के उन्मूलन का कोई ईमानदार प्रयास दिखाई देता है। यदि हमें संसार को उन्नत, वैचारिक रूप से समृद्ध और संवेदनशील बनाना है तो करुणा और परोपकार जैसे भावों को बचाना होगा ताकि व्यक्ति मानवीय गुणों से संपन्न और उत्तरदायी बने। चरित्र निर्माण पर ध्यान देना होगा।
No comments:
Post a Comment