अनदेखी के नतीजे
इलमा अजीम
लगातार दी जा रही चेतावनियों का नतीजा आखिरकार सामने आ ही गया। वैज्ञानिक बार-बार चेता रहे हैं कि भारत के पश्चिमी तट पर वर्षा का पैटर्न बदलता जा रहा है। वर्षा अक्सर एक छोटे से क्षेत्र में तीव्र, अल्पकालिक या गरज के साथ हो रही है। वजह भी दक्षिण-पूर्व अरब सागर के गर्म होने की बताई जा रही है। मंगलवार को केरल जिले के वायनाड में अपने साथ किए जा रहे खिलवाड़ से गुस्साई प्रकृति भी रौद्र रूप में सामने आ गई। वायनाड में हुए भयावह भूस्खलन की तस्वीरों ने सबको इस कद्र बेचैन कर दिया है कि अब जरूरत उन कारणों की तलाश की हो गई है जिनकी वजह से यह विनाशलीला सामने आई। पिछले कुछ वर्षों में किए गए अध्ययन बताते हैं कि जलवायु परिवर्तन और वन क्षेत्र की हानि वायनाड में विनाशकारी भूस्खलन के दो सबसे महत्त्वपूर्ण कारण हैं। राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के बीते वर्ष जारी भूस्खलन एटलस के मुताबिक, भारत के 30 सर्वाधिक भूस्खलन-संभावित जिलों में से 10 केरल में ही थे, और वायनाड इनमें 13वें स्थान पर था। इसी में यह भी कहा गया था कि पश्चिमी घाट और तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, गोवा व महाराष्ट्र की कोंकण पहाडिय़ों का 90 हजार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील है। दूसरी ओर, वायनाड में घटते वन क्षेत्र पर 2022 के एक अध्ययन से पता चलता है कि 1950 से 2018 के बीच जिले में 62 फीसदी वन गायब हो गए, जबकि बागान (प्लांटेशन) क्षेत्र में लगभग 1,800 प्रतिशत की वृद्धि हुई। जाहिर है कि वनों की कटाई से भू-भाग कमजोर हो चुका है जो तेज बारिश में बार-बार भूस्खलन की वजह बनता है। समय रहते नहीं चेते तो वायनाड जैसी तस्वीरें और देखने को मिलते देर नहीं लगने वाली।
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