सवालों के घेरे में थाना मेडिकल
जीरो टॉलरेंसव अपराध मुक्त पर उठे सवाल
मेरठ।प्रदेश सरकार की ज़ीरो टॉलरेंस नीति और अपराध मुक्त, भय मुक्त वातावरण की प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। जिले में कानून व्यवस्था की स्थिति तब गंभीर हो गई जब उपज पत्रकार संगठन के जिला कोषाध्यक्ष और राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त पत्रकार विश्वास राणा की माता व सास के घर पर 15-20 नकाबपोश हमलावरों ने हमला कर दिया। इस हमले के दौरान हमलावरों ने घर में तोड़फोड़ की, जिससे परिवार के सदस्य गहरे सदमे में आ गए। थाना प्रभारी के शैली पर सवाल उठते दिखाई दे रहे है।
हमले के बाद विश्वास राणा ने मेडिकल थाने में शिकायत दर्ज कराई, लेकिन 38 घंटे बीत जाने के बाद भी थाने के प्रभारी सूर्यदीप बिश्नोई ने एफआईआर दर्ज नहीं की। आरोप है कि मूल शिकायत को बदलवाकर दूसरी तहरीर लिखवाई गई, जिसके बाद ही एफआईआर दर्ज की गई। इस घटना से स्थानीय पत्रकारों में भारी आक्रोश व्याप्त हो गया है।
वैसे भी थाना प्रभारी सूर्यदीप बिश्नोई का विवादों से पुराना नाता रहा है। अभी पिछले 17 अगस्त 2024 को मेडिकल थाना पुलिस ने थाने में खड़ी एक लावारिस गाड़ी को गाजियाबाद की फर्जी नंबर प्लेट लगाकर दौड़ा दिया था। इसका खुलासा होने पर एसएसपी ने जांच करायी लेकिन कोई सख्त कार्रवाई नहीं की गयी। इससे पहले, 23 अगस्त 2023 को इंचौली थाना प्रभारी रहते हुए भी उन्होंने एक पत्रकार के मामले में लापरवाही बरती थी। उस समय भी मामले को दबाने की कोशिश की गई थी, जिसके बाद आक्रोशित पत्रकारों ने थाने पर धरना दिया था और बाद में ही मुकदमा दर्ज हुआ था।
बताया जा रहा है कि सूर्यदीप बिश्नोई का 9 जुलाई 2024 को बुलंदशहर ट्रांसफर किया गया था, जिसे उन्होंने बदलवाकर बागपत करा लिया, लेकिन मेरठ से उनका ट्रांसफर नहीं हो सका। सूत्रों के मुताबिक, बिश्नोई खुद को भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी का रिश्तेदार बताते हैं, जिसके चलते उनका मेरठ से तबादला नहीं हो पाया।
इस घटनाक्रम ने उत्तर प्रदेश सरकार की ज़ीरो टॉलरेंस नीति और पुलिस प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर प्रश्नचिन्ह खड़े कर दिए हैं। स्थानीय पत्रकारों और नागरिकों का मानना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और डीजीपी प्रशांत कुमार को इस मामले में तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए और निष्पक्ष जांच कराकर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए।
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