नशे से मुक्ति
 इलमा अजीम 
विकसित भारत के लक्ष्य को या विकसित विश्व के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नशे से मुक्ति आवश्यक है। समय रहते अगर इस समस्या पर गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया तो यह समस्या दिन दूनी रात चौगुनी बड़ी होती जाएगी। सामाजिक तौर पर विश्लेषण करें तो देखेंगे यह अवगुण हर वर्ग में बढ़ता ही चला जा रहा है। इतना ही नही सामाजिक परंपराओं की तरह व्यसनी व्यक्ति इसे पीढ़ी दर पीढ़ी आगे भी बढ़ा रहे हैं। इसका परिणाम यह है कि नई पीढ़ी के जिस व्यक्ति को समाज के लिए नवाचार करना चाहिए था, वह पुरानी पीढ़ी के किसी व्यसनी व्यक्ति से जुड़कर इस दलदल में फंस जाता है। तकनीकी और मेडिकल शिक्षा से जुड़े बड़े-बड़े संस्थानों में भी कई विद्यार्थी नशे में लिप्त नजर आते हैं। व्यसन पहले व्यक्ति के व्यक्तित्व को तोड़ता है। फिर वह सामाजिक ताने-बाने को तोड़ता है, संस्था और परिवार को तोड़ता है। इसके बाद प्रदेश और देश को नुकसान पहुंचाता है। नशे की गिरफ्त में आए व्यक्ति अपना एक अलग समाज बना लेते हैं, व्यसनी सामाजिक झंझावात से मुक्ति नशे में खोजता हैै। संपन्न वर्ग में नशे के लिए हेरोइन, चरस, इंजेक्शन, सर्प विष, नशीली दवाइयों का प्रयोग बढ़ रहा है। गरीब तबका गांजा, अफीम, देशी शराब जैसे नशे का इस्तेमाल ज्यादा करता है। भारत की समुद्री सीमा कई देशों से लगी हुई है। पड़ोस के कुछ देशों में मादक द्रव्यों की तस्करी के लिए माहौल है। इस हालत में भारत के लिए नशे के अवैध व्यापार को रोकना बड़ी चुनौती है।
लोगों को नशे की गिरफ्त से बचाने के लिए हमें वैयक्तिक और सामाजिक स्तर पर काउंसलिंग की आवश्यकता है। समाज का जो प्रबुद्ध वर्ग है, उसका दायित्व बनता है कि वह समाज के प्रति विशेष चेतन हो और आगे आए। नवयुवकों में फैशन और दिखावे के कारण भी नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है। इसको रोकना चाहिए, उन्हें समझाना होगा। परिवार, मनोवैज्ञानिक सलाहकार, डॉक्टर, अध्यापक, सभी लोगों को एक साथ समन्वय टीम बनाकर व्यसनी व्यक्ति तक पहुंचना होगा। विकसित भारत का लक्ष्य पाने के लिए यह शुरुआत जरूरी है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts