जल संरक्षण जरूरी
इलमा अजीम
दुनिया में पेयजल की समस्या दिनों दिन गहराती जा रही है। इसके बावजूद हम पेयजल को बचाने और जल संचय के प्रति गंभीर नहीं हैं। संयुक्त राष्ट्र चेतावनी दे चुका है कि 2025 में दुनिया की चौदह फीसदी आबादी के लिए जल संकट एक बहुत बड़ी समस्या बन जाएगा। अगर अभी से पानी की बर्बादी पर अंकुश नहीं लगाया गया तथा जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गए तो हालात और खराब हो जाएंगे। इंटरनेशनल ग्राउंड वाटर रिसोर्स असेसमेंट सेंटर के अनुसार पूरी दुनिया में आज 270 करोड़ लोग ऐसे हैं जो पूरे एक वर्ष में तकरीबन तीस दिन तक पानी के संकट का सामना करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की मानें तो अगले तीन दशक में पानी का उपभोग यदि एक फीसदी की दर से भी बढ़ेगा, तो दुनिया को बड़े जल संकट से जूझना पड़ेगा। यह जगजाहिर है कि जल के बिना जीवन संभव नहीं है। जहां तक भारत की बात है, यदि सभी को शुद्ध पेयजल मुहैया कराना सरकार की मंशा है तो उसे प्राकृतिक जल स्रोतों पर ध्यान देना होगा। इस तथ्य को सरकार भी नजरअंदाज नहीं कर सकती कि देश के अधिकांश जल-स्रोत संकट में हैं। कुओं, तालाबों, पोखरों और दूसरे परंपरागत जलाशयों की बेरुखी के चलते वे बर्बादी के कगार पर हैं। उनकी बदहाली का सबसे बड़ा कारण उनका सूखना, उनमें सिल्ट जमा होना, मरम्मत के अभाव में टूटते चला जाना है। फिर अधिकतर जलाशयों का इस्तेमाल मछली पालन और खेती किसानी में हो रहा है। हालत यह है कि तालाब और कुएं तो लुप्त हुए ही हैं, हैंडपंप भी अब बमुश्किल ही दिखाई देते हैं। इसमें दो राय नहीं कि प्राकृतिक जल-स्रोतों तथा नदियों, तालाबों, झीलों, पोखरों, कुओं के प्रति सरकारी और सामाजिक उदासीनता एवं भूजल जैसे प्राकृतिक संसाधनों के अत्याधिक दोहन ने स्वच्छ जल का गंभीर संकट पैदा कर दिया है। सच यह है कि यदि सबको पीने का शुद्ध जल मुहैया कराना है तो प्राकृतिक जल स्रोतों पर ध्यान देना होगा। दुर्भाग्य है कि भारत सिर्फ आठ फीसदी बारिश के जल का ही संचय कर पाता है। यदि बारिश के पानी का पूर्णतया संचयन कर दिया जाए तो काफी हद तक जल संकट का समाधान हो सकता है।
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