बढ़ती जनसंख्या
इलमा अजीम
भारत में आजादी के समय कुल जनसंख्या 33 करोड़ थी जो 2011 की जनगणना के मुताबिक बढक़र 125 करोड़ पहुंच गई थी। इंडिया स्टेट डॉट कॉम के अनुमान के अनुसार 2030 तक भारत की कुल जनसंख्या 153 करोड़ और 2050 तक 168 करोड़ तक पहुंच जाएगी। वहीं भारत की 65 फीसदी युवा आबादी जहां भारत का संबल है, तो वहीं देश में बढ़ती बेरोजगारी जैसी बड़ी चुनौती का पर्याय भी है। बढ़ती आबादी के पीछे अशिक्षा, अंधविश्वास, परिवार नियोजन के तौर-तरीकों में जागरूकता का अभाव और स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही जैसे बुनियादी कारण हैं। जनसंख्या वृद्धि के कारण नई पीढ़ी को भविष्य के लिए बुनियादी जरूरतों और सुविधाओं की कमी का सामना करना पड़ेगा। आज भी भारतीयों को बेरोजगारी, स्वास्थ्य संकट, भुखमरी, चिकित्सा सुविधाओं, कुपोषण, स्वच्छ पेयजल की कमी, बिजली-पानी के संकट और गरीबी से बुरी तरह से जूझना पड़ रहा है। इसके अलावा ग्रामीण आवास की समस्या, गंदा पानी और कूड़ा कचरा जैसी समस्याएं अलग से मुंह बाए खड़ी हैं। यदि समय रहते सरकारों ने आने वाली पीढिय़ों को सुंदर सुखी जीवन देने के लिए अभी से प्रयास शुरू नहीं किए तो भविष्य में भावी पीढिय़ों के समक्ष आपसी संघर्ष की परिस्थितियां निर्मित होना तय है। जून 2024 में बेरोजगारी दर बढक़र आठ महीने के उच्च स्तर 9.2 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो पिछले महीने 7 प्रतिशत थी। यह वक्त का तकाजा है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें जनसंख्या वृद्धि से पैदा हो रही चुनौतियों से निपटने के लिए एक सर्व स्वीकार्य कार्यक्रम सामने लेकर आएं ताकि भारतीय लोग परिवार नियोजन को स्वेच्छा से अपनाकर देश को आने वाली पीढिय़ों के लिए रहने लायक बनाने की दिशा में अपना योगदान दे सकें। जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर पिछले कई दशकों से बहस चल रही है। 1970 के दशक से हम सभी ‘हम दो हमारे दो’ का नारा सुनते आए हैं। हालांकि कभी भी किसी सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण के कानून को लागू करने की हिम्मत नहीं दिखाई। बढ़ती आबादी से उत्पन्न हो रही चुनौतियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार को जनसंख्या नियंत्रण कानून को अनिवार्य रूप से शीघ्र सिरे चढ़ाना होगा।
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