बनी रहे पवित्रता
 इलमा अजीम 
संसदीय लोकतंत्र में विधायी संस्थाओं का अपना महत्व होता है। इन संस्थाओं के सदस्यों से आशा की जाती है कि वे यहां जो भी जानकारी देंगे, वह तथ्यपूर्ण होगी। रामगढ़ बांध को लेकर राजस्थान के जल संसाधन मंत्री सुरेश रावत द्वारा विधानसभा में बोला गया झूठ जनता को गुमराह करने वाला ही कहा जाएगा। झूठ बोलकर जनता को गुमराह करने के बाद भी उन्हें किसी का डर नहीं है। हमारे सभ्य कहे जाने वाले समाज में तो लोग थोड़े से स्वार्थवश बड़ा झूठ भी बोल जाते हैं और ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि झूठ बोलने वालों में भय हो। चिंता की बात है कि नेता झूठ बोलने से जरा भी नहीं हिचकते। हालांकि यह अवमूल्यन सभी वर्गों में दिखाई दे रहा है पर विधायी संस्थाओं की तो पवित्रता बनी रहनी चाहिए। वहां भी यदि इस तरह का अवमूल्यन उभर गया तो फिर शेष बचेगा ही क्या? साथ ही देश में अभी भी भेदभाव की नीति चलाई जा रही है। दरअसल, भेदभाव की मानसिकता वाली सोच को जड़ से खत्म करने की जरूरत है। सजा के सख्त प्रावधान ही काफी नहीं, इस पर अमल भी होना चाहिए। शिक्षा के प्रसार और संस्कारों की जागरूकता के प्रयास भी उतनी ही तेजी से होने चाहिए। जो लोग ऐसा बर्ताव करते हैं उन्हें सख्त सजा देकर यह संदेश तो देना ही होगा कि समाज में भेदभाव के लिए कोई जगह नहीं है। कहीं भी व्यक्ति से व्यक्ति का भेद होने लगे, ऊंच-नीच का बर्ताव होने लगे और कोई भी खुद को सबसे ऊपर मानते हुए संविधान की भावनाओं के विपरीत मापदंड तय कर दे तो कैसे कहा जा सकता है कि ऐसे लोग प्रगतिशील देश के निवासी हैं।

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