ईमानदार हो पहल
 इलमा अजीम 
कजाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के दौरान विदेश मंत्री एस. जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी के बीच हालिया बातचीत से दोनों देशों में संबंधों में सुधार की उम्मीद जगी है। दोनों विदेश मंत्री शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में इस बात को लेकर सहमत हुए हैं कि वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी और शेष मुद्दों के समाधान के लिये राजनयिक और सैन्य चैनलों के माध्यम से दोगुने प्रयास किये जाएंगे। गतिरोध की मौजूदा स्थिति में इस घोषणा को नई उम्मीद मानना चाहिए। लेकिन हकीकत यह भी है कि हाल के वर्षों में पूर्वी लद्दाख में लंबे समय से जारी गतिरोध को दूर करने को लेकर भी बीच-बीच में ऐसे दावे कई बार किये गए हैं। बैठक के दौरान दोनों नेता इस बात को लेकर सहमत नजर आए कि द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत बनाने के लिये नई पहल की जानी चाहिए। निस्संदेह, भारत और चीन एशिया की बड़ी ताकतें हैं और दोनों देशों की लंबी सीमा एक-दूसरे से लगती है। यह भी निर्विवाद सत्य है कि हम अपने पड़ोसी नहीं बदल सकते, ऐसे में सहयोग और विश्वास के रिश्ते दोनों देशों व दक्षिण एशिया के विकास के लिये भी जरूरी है। समय की जरूरत है कि शांति और अमन-चैन के लिये बीते गतिरोध से निकलकर जमीनी स्तर पर कुछ ठोस करने के लिये आगे बढ़ा जाए।
निस्संदेह, चीन के छल-बल का लंबा इतिहास रहा है। भारत वर्ष 1962 के युद्ध के जख्मों को अभी तक नहीं भूला है। यही वजह है दोनों देशों के बीच अविश्वास की कमी गाहे-बगाहे उभरकर आ ही जाती है। इसी विश्वास की कमी का उदाहरण सीमावर्ती गांवों में सैन्य उद्देश्य से किये जाने वाले विकास में भी नजर आता है। अरुणाचल को लेकर चीन द्वारा की जानी वाली घोषणाएं भारत को अक्सर असहज करती रही हैं। यही वजह है कि भारत ने चीन के प्रयासों का जवाब देने के लिए अरुणाचल प्रदेश में वास्तविक नियंत्रण रेखा के करीब गांव व बस्तियां बसाने का निर्णय किया है। 

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