रेल दुर्घटनाओं से उपजते सवाल
- कमलेश पांडे
आंकड़े बताते हैं कि भारत के रेलवे नेटवर्क में, 64,000 किलोमीटर (40,000 मील) ट्रैक पर 14,000 ट्रेनों में प्रतिदिन 12 मिलियन से अधिक यात्री यात्रा करते हैं। बावजूद इसके यहां रेल दुर्घटनाओं का एक लंबा इतिहास रहा है। गत जून महीने में ही पश्चिम बंगाल में एक मालगाड़ी एक यात्री ट्रेन से टकरा गई, जिसमें नौ लोगों की मौत हो गई और दर्जनों लोग घायल हो गए, क्योंकि मालगाड़ी के चालक ने सिग्नल की अनदेखी की थी।
इसी तरह से पिछले साल, पूर्वी भारत में एक बड़ी ट्रेन दुर्घटना हुई, जिसमें 280 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी, जो दशकों में सबसे घातक दुर्घटनाओं में से एक थी। आलम यह है कि रेल सुरक्षा में सुधार के तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद, हर साल कई एक दुर्घटनाएँ होती हैं, जिनका कारण अक्सर मानवीय भूल या पुराने सिग्नलिंग उपकरण होते हैं। लेकिन लगातार हो रही इन रेल दुर्घटनाओं को देखते हुए आधा दर्जन से अधिक महत्वपूर्ण सवाल पैदा हो रहे हैं, जिनके जवाब समय रहते ही मिल जाएं तो इन दुर्घटनाओं को टाला जा सकेगा।
पहला, रेलवे की 'कवच' सुरक्षा प्रणाली अब तक केवल 1 प्रतिशत रेलवे ट्रैक को ही क्यों कवर कर पाई है? इस विलम्ब के लिए कौन जिम्मेदार है?
दूसरा, अगर देश के पास सभी रेलवे ट्रैक पर कवच प्रणाली लगाने के साधन नहीं हैं, तो प्रधानमंत्री और रेलमंत्री कवच प्रणाली को अपग्रेड करने के बजाय बुलेट ट्रेनों और 250 किलोमीटर प्रति घंटे की हाई स्पीड ट्रेनों की संख्या बढ़ाने के पीछे क्यों पड़े हैं? क्या उनके ऊपर कोई कूटनीतिक दबाव है या फिर मित्र उद्योगपतियों और ठेकेदारों को उपकृत करने के लिए यह सबकुछ किया जाएगा।
तीसरा, लगातार रेल दुर्घटनाओं के बावजूद भारत सरकार ने रेल सुरक्षा पर खर्च करने के बजाय बुलेट ट्रेनों पर 1 लाख करोड़ रुपये क्यों खर्च किए? क्या इसके लिए रेलवे सुरक्षा के लिए आवंटित धन को डायवर्ट किया गया?
चतुर्थ, वित्त वर्ष 2024 में ट्रैक नवीनीकरण के लिए आवंटन बजट के 7.2 प्रतिशत तक ही सीमित क्यों रखा गया? क्या सुरक्षित ट्रेन संचालन के लिए रखरखाव और नवीनीकरण को उच्च प्राथमिकता नहीं दी जानी चाहिए? यदि नहीं तो फिर उपाय क्या है?
पंचम, दिसंबर 2022 में सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया था कि 2018 से 2021 तक 69 प्रतिशत रेल दुर्घटनाएँ रेल दुर्घटनाओं से संबंधित थीं। सीएजी निरीक्षण रिपोर्ट में गंभीर कमियों की पहचान की गई थी। लेकिन उन कमियों पर अभी तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं की गई? इस लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है?
छठा, रेलवे में लगभग 3 लाख रिक्तियाँ क्यों हैं? जिनमें से 1.5 लाख से अधिक सुरक्षा से संबंधित पद हैं। क्या इस सरकार के लिए यात्री सुरक्षा का कोई मतलब नहीं है? या फिर इसे भी चरणबद्ध रूप से निजी कंपनियों को सौंपने की तैयारी चल रही है, जो समय के साथ प्रकाश में आएगा।
सातवां, लगातार दुर्घटनाओं के बावजूद मोदी सरकार ने रेल बजट को आम बजट में क्यों मिला दिया? क्या इसे उचित फैसला करार दिया जा सकता है।
आठवां, जब कतिपय जांच रिपोर्ट में दुर्घटना के लिए ऑटोमेटिक सिग्नल की विफलता, संचालन के प्रबंधन में कई स्तरों पर खामियाँ और लोको पायलट और ट्रेन मैनेजर के पास वॉकी-टॉकी जैसे महत्वपूर्ण सुरक्षा उपकरण की अनुपलब्धता जैसे कुछ कारण बताए गए हैं, तो फिर उन्हें पूरा करके इन कमियों को दूर क्यों नहीं किया जा रहा है?
नवम, इन तमाम गम्भीर सवालों के बावजूद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव, जो आत्म-प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ते, सेल्फी और रील कल्चर के आदि हो चुके हैं, को भारतीय रेलवे में हुई भारी खामियों की सीधी जिम्मेदारी लेनी चाहिए या नहीं? यदि नहीं तो क्यों नहीं?
दशम, सच कहा जाए तो यह जांच का विषय है कि ट्रेन से जुड़ी कई दुर्घटनाएँ लगातार हो रही हैं, पर अपेक्षित कार्रवाई नदारत। देश में लगातार रेल हादसे हो रहे हैं, लोग अपनी जान गंवा रहे हैं, ऐसे में अगर कोई सबसे बड़ा दोषी है तो वो रेल मंत्री हैं या फिर रेल महकमें के वो बड़े अधिकारी जो इन्हें रोकने के प्रति गम्भीर नहीं हैं। इसलिए पूर्व के रेल मंत्रियों की तरह ही इन्हें भी इस्तीफा दे देना चाहिए।
अंतिम सवाल यह है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है, और यदि नहीं, तो क्यों नहीं? वैसे तो पिछले दशक में भारत में कई रेल दुर्घटनाएँ कई कारणों से हुई हैं, जिनमें यांत्रिक विफलताओं से लेकर मानवीय लापरवाही तक शामिल हैं।
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