नापाक आतंकवाद
 इलमा अजीम 
जम्मू में खुफिया-तंत्र की कमियां अब भी महसूस की जा रही हैं। वैसे जम्मू संभाग में आतंकी हरकतें अचानक नहीं बढ़ी हैं। ये आतंकियों की रणनीति हो सकती हैं। अलबत्ता 1990-2005 के सालों में जम्मू के घने जंगलों में आतंकी गतिविधियां और हमले निरंतर देखने को मिलते रहे। यह दीगर है कि घुसपैठ, गिरोह बाजी, अलगाववाद और पाक परस्त आतंकवाद विरोधी ऑपरेशन और अभियान कश्मीर घाटी में ज्यादा किए जाते रहे। तब जम्मू को आतंकवाद-मुक्त करा लिया गया था। अब नए सिरे से आतंकियों ने अपने नेटवर्क जम्मू में फैलाए हैं और अचानक हमले बढ़ा दिए गए हैं। जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद नगण्य है। फिर भी 2024 में अभी तक 20 आतंकी हमले किए जा चुके हैं और 13 जून तक 42 नागरिकों और जवानों ने अपनी जिंदगी खोई है। भारत ऐसा नुकसान भी क्यों झेले? बहरहाल केंद्र सरकार से जो निर्देश मिले हैं, उनके मद्देनजर जम्मू-कश्मीर पुलिस महानिदेशक स्वैन का दावा है कि अब बचे-खुचे आतंकवाद को कुचल दिया जाएगा, मसल दिया जाएगा, घर-घर ढूंढ कर चुन-चुन कर मौत के घाट उतार दिया जाएगा। 



बहरहाल हमारी सुरक्षा एजेंसियों और जवानों की अग्निपरीक्षा ‘अमरनाथ यात्रा’ है। यह 29 जून से शुरू हो रही है और अगले ही दिन जनरल उपेन्द्र द्विवेदी नए सेना प्रमुख का कार्यभार संभाल रहे हैं। वह कश्मीर और आतंकवाद से अनभिज्ञ, अपरिचित नहीं हैं। अमरनाथ यात्रा अगस्त तक जारी रहेगी। आतंकी हमला करने की फिराक में होंगे और हमारी सुरक्षा एजेंसियों ने फुलप्रूफ योजना बनाई होगी। यात्रा के चप्पे-चप्पे पर 500 कंपनियों के जवान तैनात किए जा रहे हैं। खुफिया सूचनाओं पर तुरंत कार्यवाही की जा रही है। खासकर टीआरएफ आतंकी संगठन के साथ-साथ लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद के दहशतगर्दों पर भी निगाहें चिपकी रहेंगी। इस बार प्रशासन ने प्रत्येक तीर्थयात्री का 5 लाख रुपए का बीमा भी किया है। जम्मू-कश्मीर और आतंकवाद के संदर्भ में हमारे उन अनुभवी जनरलों की सोच कुछ भिन्न है, जो दशकों तक कश्मीर में कार्यरत रहे हैं और आतंकियों को ढेर किया है। अब ऐसे रक्षा विशेषज्ञों की राय है कि पाकिस्तान के साथ जो युद्ध विराम किया हुआ है, तुरंत उस समझौते को रद्द किया जाए। यह युद्धविराम एकतरफा और बेमानी है, क्योंकि पाकिस्तान आतंकियों की घुसपैठ कराता रहा है। आतंकियों को हथियार भी मुहैया कराता है।

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