(लोकसभा चुनावी महासंग्राम)
भदोही: अगाड़ी-पिछाड़ी चलता हाथी और बदलते महावत !
- प्रभुनाथ शुक्ला
भदोही लोकसभा सीट राजनैतिक दलों के लिए प्रतिष्ठा का सवाल बन गई है।परिणाम को अपने पक्ष में लाने के लिए सभी दल एड़ी-चोटी का जोर लगाते दिखते हैं। लेकिन बहुजन समाजपार्टी इस होड़ में सबसे आगे निकल गईं है। पूरे देश में संभवत: बसपा ही एकमात्र ऐसा राजनैतिक दल है जिसने तीसरी बार भदोही लोकसभा सीट पर अपना उमीदवार बदला है।
भदोही के चुनावी महासंग्राम में उतरी हाथी अभी तक स्थिर नहीं हो पाई। वह कभी आगे तो कभी पीछे कदम कर रही है। लेकिन अब उम्मीदवार नहीं बदले  जाएंगे क्योंकी अब नामांकन की प्रक्रिया शुरू हो गईं है। इण्डिया गठबंधन के उम्मीदवार ललितेश पति त्रिपाठी और दूसरे उमीदवारों ने अपना नामांकन शनिवार को भर दिया है। भदोही में लड़ाई त्रिकोणीय है। यहाँ भजपा -निषाद पार्टी, इण्डिया गठबंधन और बसपा में सीधा मुकाबला है। अब इस युद्ध में कौन विजयी होता है यह देखना होगा।
भदोही बसपा के लिए इतनी महत्पूर्ण सीट क्यों हो गईं कि उसे एक -दो नहीं तीन -तीन बार उम्मीदवार बदलना पड़ा। बसपा बार -बार उम्मीदवारों को बदल कर क्या संदेश देना चाहती है। क्या जिन्हें टिकट दिया गया वे लड़ने के लिए तैयार नहीं थे या पार्टी कार्यकर्ता उस पर सहमत नहीं थे। फिलहाल यह पार्टी का अपना आंतरिक मामला है। भदोही से 2009 के बाद बसपा कभी चुनाव नहीं जीत पायी। लेकिन स्वतंत्र लोकसभा सीट के पहले सांसद पंडित गोरखनाथ पांडेय बसपा से ही चुनाव जीता था।
बहुजन समाज पार्टी ने तीसरी बार पार्टी के मंडल क़्वार्डिनेटर हरिशंकर चौहान उर्फ़ दादा को चुनावी मैदान में उतारा है। भदोही के सुरियावां के रहने वाले दादा बाहरी उम्मीदवार नहीं हैं। यह बसपा से साल 2022 में भदोही से विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था और तीसरी पायदान पर थे। यहाँ से सपा के जाहिद बेग भाजपा के रविन्द्रनाथ को पराजित किया था। रविंद्रनाथ को भी 95 हजार से अधिक वोट मिले थे। दादा की चौहान बिरादरी में अच्छी ख़ासी पकड़ बताई जाती है। जबकि दलित बसपा के परम्परागत वोटर हैं। चुनावी मैदान में दादा के आने से जहाँ भजपा को नुकसान उठाना पड़ सकता है वहीं इंडिया गठबंधन को फायदा मिल सकता है।
अहम सवाल उठता है की पार्टी मुस्लिम समुदाय से आने वाले दो उम्मीदवारों का टिकट काट कर दादा को क्यों उमीदवार बनाया। सबसे पहले बसपा ने भदोही पालिकाध्यक्ष नरगिस अतहर के पति अतहर अंसारी को चुनाव मैदान में उतारा था। फिर उनका टिकट काटकर इरफ़ान अहमद बबलू को टिकट दिया। अब तीसरी बार हरिशंकर चौहान उर्फ़ दादा को टिकट दिया गया है। मुस्लिम उमीदवारों की वजह से बसपा अलसंख्य समुदाय के वोट में सेंधमारी कर इण्डिया गठबंधन को कमजोर कर सकती थीं लेकिन अचानक उसे फैसला बदलना पड़ा। हालांकि दादा चौहान को  पूर्व के दोनों उमीदवारों से बेहतर राजनैतिक अनुभव और जनछबि है। क्योंकि पूर्व के घोषित उम्मीदवार कोई चुनाव नहीं लड़ा था और वे चर्चित आम आदमी के बीच के चेहरे नहीं थे। जबकि दादा चार बार जहाँ जिला पंचयात सदस्य रह चुके हैं वहीं वे 2022 में भदोही विधानसभा का चुनाव लड़ चुके हैं। उन्हें 16.28 फीसदी वोट यानी 40,758  वोट मिले थे। दादा के लिए लोकसभा का यह पहला चुनावी अनुभव होगा।
भदोही में जातीय समीकरण के अनुसार बात करें तो ब्राह्मण पहले, बिंद दूसरे, दलित तीसरे और मुस्लिम चौथे स्थान पर हैं। बसपा भी दलित, मुस्लिम और पिछड़ो पर दांव खेला है। अब बदली राजनैतिक परिस्थिति में चौहान बिरादरी दादा के साथ खड़ी हो सकता है क्योंकि वे खुद चौहान बिरादरी से हैं। मुस्लिम मतों में दादा कितना सेंध लगा सकते हैं यह देखना होगा। वैसे साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा यहाँ दूसरे नंबर पर थीं। पंडित रंगनाथ मिश्र को 4,66,414 वोट मिले थे। साल 2009 में बसपा से चुनावी जीत दर्ज करने वाले पंडित गोरखनाथ पांडेय ने 12 हजार से जीत दर्ज किया। जबकि 2014 में बसपा ने पूर्वमंत्री पंडित राकेशधर त्रिपाठी को उतारा था।
हालांकि वे भाजपा के वीरेंद्र सिंह मस्त से चुनाव हार गए लेकिन 2, 45, 554 मत यानी 25.1 फीसदी वोट हासिल कर दूसरे नंबर पर रहे। मिर्जापुर -भदोही संयुक्त संसदीय क्षेत्र से नरेंद्र कुशवाहा और रमेश दुबे बसपा के सांसद रह चुके हैं। फिलहाल राजनीतिक फांस में उलझी बसपा हरिशंकर चौहान उर्फ़ दादा को तीसरी बार हाथी का महावत बनाया है अब वह क्या गुल खिलाएंगे यह वक्त बताएगा।
 

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