तपते शहरों में जीना दूभर
 इलमा अजीम 
भारत के बड़े हिस्से में सदियों से गर्मी पड़ती रही है लेकिन अब इसका दायरा बढ़ रहा है व दिन भी दुगने हो रहे हैं। गत पांच सालों में चरम तापमान और लू की घटनाएं न केवल समय के पहले हो रही हैं, बल्कि लम्बे समय तक इनकी मार रहती है, खासकर शहरीकरण ने इस मौसमी आग में ईंधन का काम किया है, शहर अब जितने दिन में तपते हैं, रात उससे भी अधिक गरम हवा वाली होती है। आबादी से उफनते महानगरों में बढ़ता तापमान अकेले संकट नहीं होता, उसके साथ बढ़ती बिजली-पानी की मांग, दूषित होता पर्यावरण भी नया संकट खड़ा करता है। अमेरिका की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन के मुताबिक, बढ़ती आबादी और गर्मी के कारण भारत के चार बड़े शहर नई दिल्ली, कोलकाता, मुम्बई और चेन्नई सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। कोलकाता में बढ़ते जोखिम के पीछे 52 फीसदी गर्मी तथा 48 फीसदी आबादी जिम्मेदार है। वैज्ञानिकों का कहना है कि बाहरी भीड़ को नही रोका गया तो तापमान तेजी से बढ़ेगा जो स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह साबित होगा। शहरों में बढ़ते तापमान के कई कारण हैं– सबसे बड़ा तो शहरों के विस्तार में हरियाली का नष्ट होना। भले ही दिल्ली जैसे शहर दावा करें कि उनके यहां हरियाली की छतरी का विस्तार हुआ है लेकिन हकीकत में यहां लगने वाले अधिकांश पेड़ पारम्परिक ऊंचे वृक्ष की जगह, जल्दी उगने वाले झाड़ हैं, जो धरती के बढ़ते तापमान की विभीषिका से निबटने में अक्षम हैं। ‘शहरी ऊष्मा द्वीप’ शहरों की कई विशेषताओं के कारण बनते हैं। बड़े वृक्षों के कारण वाष्पीकरण और वाष्पोत्सर्जन होता है जो कि धरती के बढ़ते तापमान को नियंत्रित करता है। बोगेनवेलिया जैसे पौधे धरती के शीतलीकरण प्रक्रिया में कोई भूमिका निभाते नहीं हैं। शहरों की सड़कें उसका तापमान बढ़ने में बड़ी कारक हैं। महानगर में सीमेंट और कंक्रीट के बढ़ते जंगल, डामर की सड़कें और ऊंचे मकान बड़ी मात्रा में सूर्य की किरणों को सोख रहे हैं। इस कारण शहरों में गर्मी बढ़ रही है। वैज्ञानिकों के मुताबिक तापमान में जितनी वृद्धि होगी, बीमारियां उतना ही गुणा बढ़ेंगी और जनहानि होगी। सड़क डामर की हो या कंक्रीट की, ये गर्मी को अवशोषित करती हैं और फिर तापमान कम होते ही उसे उत्सर्जित कर देती हैं। हालांकि शहरों को भट्ठी बनाने में इंसान भी पीछे नहीं। वाहनों के अलावा पंखे, कंप्यूटर, रेफ्रिजरेटर और एसी जैसे बिजली के उपकरण इंसान को सुख देते हैं लेकिन ये वहां का तापमान बढ़ने में बड़ी भूमिका अदा करते हैं। फिर कारखाने, निर्माण कार्य और बहुत कुछ है जो शहर को उबाल रहा है। यदि शहर में गर्मी की मार से बचना है तो अधिक से अधिक पारम्परिक पेड़ों का रोपना जरूरी है, साथ ही शहर के बीच बहने वाली नदियां, तालाब, जोहड़ यदि निर्मल और अविरल रहेंगे तो बढ़ी गर्मी को सोखने में ये सक्षम होंगे। 

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