घटते मतदान के मायने
इलमा अजीम
आम चुनाव, 2024 के दूसरे चरण में भी मतदान अपेक्षाकृत घटा है। अर्थात चुनाव के प्रति हम उदासीन या लापरवाह दिखाई दे रहे हैं। पहले दोनों चरणों में 190 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है। यानी करीब 35 फीसदी चुनाव सम्पन्न हो चुका है, लेकिन दूसरे चरण की 88 लोकसभा सीटों पर करीब 16 करोड़ पात्र मतदाता थे। उनमें से करीब 4.5 करोड़ मतदाताओं ने वोट नहीं डाले। आखिर क्यों? क्या इसे चुनाव-बहिष्कार माना जाए? दूसरे चरण में मतदान शनिवार शाम 7 बजे तक 66.7 फीसदी गिना गया। यह चुनाव आयोग का लगभग अंतिम आंकड़ा है। 2019 के चुनाव की तुलना में यह 3 फीसदी कम रहा। मध्यप्रदेश में 9 फीसदी, उप्र में 6.9 फीसदी, बिहार में 5 फीसदी, बंगाल में 4 फीसदी और राजस्थान में 3.39 फीसदी मतदान कम हुआ है। दक्षिण, पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में भी मतदान घटा है। कुछ महत्वपूर्ण सीटों में से राहुल गांधी की वायनाड पर 6 फीसदी से ज्यादा और प्रख्यात अभिनेत्री हेमामालिनी की मथुरा सीट पर करीब 11 फीसदी मतदान घटा है। टीवी धारावाहिक ‘रामायण’ में प्रभु राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल के मेरठ में करीब 6 फीसदी, केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर और पूर्व केंद्रीय मंत्री शशि थरूर के तिरुवनंतपुरम में करीब 10 फीसदी मतदान कम हुआ है। दरअसल 2019 के दूसरे चरण में जिन सीटों पर भाजपा जीती थी, उन पर 3 फीसदी तक मतदान कम हुआ है। जो सीटें कांग्रेस ने जीती थीं, उन पर 5-10 फीसदी मतदान घटा है। हिंदी पट्टी के प्रमुख राज्यों में मतदान औसतन 7 फीसदी तक घटा है। ये राज्य ही भाजपा के दुर्गनुमा चुनावी गढ़ हैं। क्या यह घटा हुआ मतदान भाजपा के खिलाफ एक ‘खामोश चुनावी लहर’ है? सवाल यह भी है कि फिर यह लहर किस राजनीतिक दल के पक्ष में है? कांग्रेस ने तो 300 सीटों पर भी उम्मीदवार नहीं उतारे हैं और गठबंधन के तौर पर ‘इंडिया’ छिन्न-भिन्न स्थिति में है। तो फिर जनादेश कैसा होगा और केंद्र सरकार का स्वरूप भी कैसा होगा? चुनाव का जो रुझान दिखाई दे रहा है, उसमें प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के प्रति गंभीर नाराजगी का भाव महसूस नहीं होता। यदि सरकार बदलने के लिए मतदान होना था, तो लबालब भीड़ पोलिंग स्टेशनों के अंदर-बाहर दिखाई देती और मतदान भी 70 फीसदी से ज्यादा होता। कांग्रेस के पास काडर, बूथ कार्यकर्ता और मतदाता को पोलिंग स्टेशन तक पहुंचाने वाले संगठन की कमी देखी जाती रही है, लेकिन मतदाताओं का ऐसा सैलाब भी गायब है, जो 400 पार के जनादेश को सुनिश्चित कर दे। हालांकि प्रधानमंत्री के मंगलसूत्र और मुसलमान वाले अभियान के बाद ध्रुवीकरण महसूस किया गया है। जुमे की नमाज के बाद मुसलमान भी पोलिंग स्टेशनों की ओर गए हैं। क्या वह सारा मतदान भाजपा-विरोधी हुआ है? गंभीर सवाल यह है कि मतदान एक स्तर के बाद उठ क्यों नहीं रहा है? पूरे देश में गर्मी अभी इतनी भीषण नहीं है कि सुबह और शाम में मतदान न किया जा सके। क्या युवाओं और नए मतदाताओं ने मतदान कम किया? उनकी दिलचस्पी कम दिखाई दी है। ऐसे कई लाख मतदाताओं ने वोट नहीं दिए। सवाल यह भी है कि किस राजनीतिक पक्ष के मतदाता अपने घरों से बाहर नहीं निकले? चूंकि मतदान शुक्रवार हो हुए हैं, लिहाजा यह भी एक कारण हो सकता है कि लंबे सप्ताहांत के मद्देनजर लोग छुट्टी पर निकल गए हों! लोकतंत्र की अनदेखी यहां भी हुई है। यदि लोकतंत्र को वाकई जिंदा और प्रासंगिक रखना है, तो भरपूर मतदान कीजिए। चुनाव ही लोकतंत्र की जीवन-रेखा हैं। मताधिकार हमारा संवैधानिक, मौलिक अधिकार है, क्योंकि हम एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र हैं। मतदान छुट्टी या सैर-सपाटे का दिन नहीं है, क्योंकि हम पर देश की संसद और सरकार चुनने का गुरुत्तर दायित्व है। इस दायित्व की लगातार अनदेखी की जा रही है।
No comments:
Post a Comment