विपक्षी एकता के निहितार्थ
इलमा अजीम
दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में आयोजित विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की महारैली कई मायनों में खास कही जा सकती है। इस रैली के जरिए एक बार फिर ‘इंडिया’ बिखरने के बजाय लामबंद होता दिखाई दिया। आपसी विरोधाभास को भी उन्होंने स्वीकार किया। इस रैली में गठबंधन समर्थक और भाजपा-विरोधी तमाम बड़े नेता मौजूद रहे। इनमें एकजुटता भी साफ नजर आ रही थी।
इस रैली के जरिए विपक्षी नेताओं ने जनता को आगाह किया कि यदि तीसरी बार भी मोदी सरकार बनी, तो देश का संविधान बदलने की शुरुआत होगी। शासन और भी एकाधिकारवादी हो जाएगा। लोकतंत्र की आत्मा खत्म कर दी जाएगी। जिस तरह रूस पर पुतिन का राज है, उसी तरह भारत में मोदी की स्थिति होगी। यह आशंका कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े ने जताई थी। संविधान को बदलने की बात राहुल गांधी ने की, जिन्हें किन्हीं भाजपा नेताओं ने ‘ब्रीफ’ किया था। यहां तक आगाह किया गया कि देश में आग लग जाएगी। इनके अलावा अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, शरद पवार, सीताराम येचुरी, भगवंत मान आदि विपक्षी नेताओं ने रोजगार का संकट, बेरोजगारी, महंगाई, किसानों का एमएसपी, जांच एजेंसियों की निरंकुशता और प्रशासन आदि के साझा मुद्दे उठाकर अपने लोकसभा चुनाव अभियान को गति दी। सारांश में विपक्ष की साझा रैली कई मायनों में असर छोड़ गई। बेशक ममता बनर्जी और स्टालिन सरीखे मुख्यमंत्री रैली में नहीं आए, लेकिन उन्होंने अपने प्रतिनिधि भेजकर स्पष्ट किया कि वे आज भी ‘इंडिया’ के घटक हैं। बहरहाल विपक्षी नेताओं ने चुनावों को ‘लोकतंत्र-संविधान बचाने’ की सामूहिक कोशिश चित्रित किया। दूसरी तरफ प्रधानमंत्री मोदी ने 1857 की प्रथम क्रांति की मूलभूमि मेरठ से चुनाव के दूसरे हिस्से का आगाज किया। इन दोनों जनसभाओं का आकलन करने के बाद चुनाव विश्लेषकों की व्याख्या है कि जितना एकतरफा आम चुनाव माना जाता रहा है, उतना नहीं है। कुछ गंभीर जन-समस्याओं पर लोगों में ध्रुवीकरण होने लगा है। ‘अंडर करंट’ भी माना जा रहा है। उप्र और राजस्थान सरीखे राज्यों में जिस तरह एकतरफा ‘मोदी लहर’ आंकी जा रही थी, अब वह स्थिति नहीं है।
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