समतामूलक हो विकास तंत्र
इलमा अजीम 
पिछले दशक में देश ने आर्थिक क्षेत्र में अभूतपूर्व तरक्की की है। दस वर्ष पहले भारत विश्व की दसवीं आर्थिक शक्ति था, आज पांचवीं हो गया। यह भी कहा जा रहा है कि दुनिया की चौथी औद्योगिक क्रांति का मूलाधार भारत होगा। इस विकास के साथ-साथ देश महामंदी से बच निकला है। उसकी आर्थिक विकास दर महाबली देशों के मुकाबले कहीं अधिक हो गई और हमारे विस्तृत बाजार की शक्ति देश में मांग की शक्ति बनकर न केवल घरेलू निवेश बल्कि विदेशी निवेश को भी अपनी ओर आकर्षित करने लगी। भारत दुनिया में चीन प्लस का विकल्प बनकर उभर रहा है। लेकिन समस्याएं भी कम नहीं हैं। इस समय भारत की सबसे बड़ी समस्या अंतर्राष्ट्रीय विनिमय क्षेत्र में अपनी मुद्रा के मूल्य को बढ़ाना और विदेशी मुद्रा की कमाई है। इस दिशा में हमने अपने प्रयास में धरती का विकास ही नहीं, अंतरिक्ष का व्यावसायीकरण भी शामिल कर लिया। इसके लिए नये अंतरिम बजट के बाद नई सरकार के जुलाई मास में आने वाले नये बजट में भी एक साझा बुनियादी ढांचा बनाने का संकल्प लिया गया है। देश में डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा बनाया जा रहा है। इससे धरती और आकाश में उद्यमिता के मामले में तेजी आएगी। नई आर्थिक नीति को निर्धारित करने के लिए जो रोडमैप बनाया जा रहा है, वह समावेशी आर्थिक उन्नति का रोडमैप है। इसमें देश को आयात आधारित अर्थव्यवस्था से बदलकर निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था बनाने का प्रयास किया जा रहा है। साथ ही लघु और कुटीर उद्योगों का विकास ग्रामीण और कस्बाई अंचलों में करना पड़ेगा। आज भी भारत की 50 प्रतिशत आबादी वहां रहती है। सवाल यह भी कि देश की कुल राष्ट्रीय आय में कृषि क्षेत्र का योगदान घटते हुए 17 प्रतिशत क्यों हो गया है? इस योगदान को तभी बढ़ाया जा सकता है जबकि लघु और कुटीर उद्योगों में बढ़ता निवेश नौजवानों को न केवल उपयोगी रोजगार दे बल्कि फसलों से तैयार उत्पादों को नया रूप देकर बाजार में सीधा लाये। नीतियों को वंचित सापेक्ष तेवर देना होगा, तभी हम कह सकेंगे कि भारत का चेहरा बदल रहा है।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts