न्यायिक व्यवस्था की सक्रियता

इलमा अजीम 
देश व प्रदेश की न्यायिक व्यवस्था एक ऐसा संवैधानिक संस्थान है, जो देश के आम नागरिकों के लोकतान्त्रिक, सामाजिक एवं मानवीय अधिकारों के संरक्षक के रूप में कार्य करता है या इन सभी कारकों की रक्षा एवं सुरक्षा के प्रहरी के रूप में कार्य करता है। देश की लोकतान्त्रिक व्यवस्था स्वतंत्रता और समानता की पक्षधर है। सतही स्तर पर वर्तमान में देश व प्रदेश में जिन घटनाक्रमों का पटाक्षेप हो रहा है, उनकी विवेचना पर यह निष्कर्ष निकलता है कि वर्तमान राजनीति, राजनीतिज्ञ, प्रशासन एवं प्रशासनिक अधिकारी लोकतंत्र की इस मूल धारणा के विपरीत अराजकता, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद, रिश्वतखोरी आदि अनुचित कार्यों में लिप्त हैं। इन कृत्यों पर अंकुश लगाने की दिशा में देश की न्यायिक व्यवस्था निरंतर प्रयासरत है। न्यायिक निर्णय, तर्क-वितर्क एवं तथ्यों की शुचिता पर आधारित होते हैं जिसके आधार पर ही न्यायाधीश अपने न्यायिक निर्णय का निर्धारण करते हैं। यह सर्वविदित है कि देश व प्रदेश के अधीनस्थ न्यायालयों में अधिकांश मुकदमें दो पक्षकारों के मध्य छोटे-छोटे झगड़ों, आपसी मतभेद या अहंकार, भूमि विवाद से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार के मुकद्दमों को गुण-दोष के आधार पर निर्धारित तय समय सीमा में निर्णय होना चाहिए, जिससे आम जनमानस, साधारण न्याय प्राप्त करने में, मानसिक एवं आर्थिक रूप से अत्यधिक प्रताडि़त हो रहा है। अपने व्यक्तिगत विकास की गति में अवरोध उत्पन्न कर रहा है। वर्तमान असमानता पूर्ण, भ्रष्टाचार युक्त व्यवस्था में, तथ्यों एवं तर्क -वितर्क को भी वादी-प्रतिवादी अपनी सुविधानुसार न्यायालय में प्रस्तुत कर सकता है जिसके परिणामस्वरूप उस न्यायिक निर्णय में न्याय-अन्याय के चरित्र में कोई भी भेद नहीं रह जाता है। कालांतर से ही यह सत्यापित है कि न्याय एवं मानव निर्मित कानून दीन एवं दुर्बल अपराधी को ही दंडित करता है, जबकि समर्थ व प्रभावी अपराधी अपने धन बल, छल एवं प्रभाव से सर्वथा दोष मुक्त रहता है। इससे यह प्रतीत होता है कि वर्तमान न्यायिक व्यवस्था में भी आम नागरिकों मुख्यत: निर्धन, दलित एवं महिला वर्ग के लिए न्याय प्राप्त करना एक कल्पित वस्तु है। अथक मेहनत और प्रयास से जो न्याय मिलता भी है, निश्चित रूप से थका देने वाला होता है। न्याय के सिद्धांत के संदर्भ में एक कहावत प्रचलित है कि न्याय प्राप्ति में विलम्ब भी पीडि़त पक्ष के साथ अन्याय ही माना जाता है।

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