सोशल मीडिया के जोखिम



इलमा अजीम 
आमतौर पर हर क्षेत्र में तकनीक के प्रसार ने लोगों की रोजमर्रा की जरूरत से लेकर कई तरह की सुविधाओं तक पहुंच को आसान बनाया है। मगर तकनीकी विकास के दायरे में ही जैसे-जैसे डिजिटल दुनिया में एक नया समाज बन रहा है, सोशल मीडिया के मंचों का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे कई तरह के जोखिम भी सामने आ रहे हैं। खासकर ऐसे लोगों के लिए खतरे ज्यादा हैं, जो इंटरनेट आधारित सोशल मीडिया की प्रकृति को लेकर एक परिपक्व समझ नहीं रखते और कई बार आभासी दुनिया के संजाल में उलझ जाते हैं। पैसों की ठगी या बैंक खातों से पैसा निकाल लेने जैसे अपराधों से इतर डिजिटिल दुनिया की गतिविधियों के बीच रिश्तों में अपराध अब एक जटिल रूप में सामने आ रहा है। हाल ही में दक्षिण-पश्चिम दिल्ली में एक लड़की से उसके दोस्त ने बलात्कार किया, जो कुछ ही समय पहले सोशल मीडिया पर उसके संपर्क में आया था। 



इससे पहले भी ऐसी कुछ घटनाएं हुई हैं, जिनमें किशोर उम्र की लड़कियों को सोशल मीडिया पर हुई जान-पहचान के बाद बलात्कार जैसे जघन्य अपराध का शिकार होना पड़ा। दरअसल, सोशल मीडिया के जरिए कई किशोर और युवा अपने संपर्कों और दोस्ती का विस्तार तो करते हैं, मगर अब वह सुरक्षित नहीं रह गया है। खासकर कुछ किशोरवय लड़कियां इसके संवेदनशील पहलुओं पर परिपक्व समझ नहीं रखतीं और भावुकता में लिए गए निर्णय की वजह से कई बार आपराधिक प्रवृत्ति के लड़कों की चाल में फंस कर खुद को खतरे में डाल लेती हैं। विवेक और परिपक्वता के कमजोर धरातल पर खड़ी लड़कियों को इसका खमियाजा ज्यादा भुगतना पड़ रहा है। विडंबना है कि जो सोशल मीडिया दुनिया को जानने-समझने का जरिया होना चाहिए था, उसके लापरवाह या फिर बेजा इस्तेमाल ने इसे अपराध के एक अड्डे की शक्ल देना शुरू कर दिया है। आभासी संसार में हुई दोस्तियों में भी वास्तविक दुनिया की दोस्ती की संवेदना की खोज अक्सर मृग मरीचिका साबित होती है।

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