पेड़ों के बिना बेमानी वन्यजीव संरक्षण का दावा

- ज्ञानेन्द्र रावत
सरकार देश में राष्ट्रीय पशु बाघ की संख्या में बढ़ोतरी का दावा करते नहीं थकती। एक समय विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके बाघों की तादाद में बढ़ोतरी वास्तव में प्रशंसा का विषय तो है ही, गर्व का विषय भी है। हाल ही में जारी केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की रिपोर्ट में तेंदुओं की तादाद में बढ़ोतरी का दावा किया गया है, और कहा गया है कि यह देश में जैव विविधता के प्रति भारत के अटूट समर्पण का प्रमाण भी है। अब तेंदुओं की संख्या बढ़कर करीब 13,874 हो गयी है। सरकार की उस घोषणा का भी स्वागत किया जाना चाहिए जिसके तहत सरकार ने वन्यजीवों की सात प्रजातियों यथा बाघ, शेर, तेंदुआ, हिम तेंदुआ, प्यूमा, जगुआर और चीते के संरक्षण के लिए इंटरनेशनल बिग कैट एलायंस बनाया है। इसकी सफलता उसी दशा में संभव है जब देश-दुनिया में वन्य जीवों के लिए न केवल उनके अनुकूल वातावरण हो, और साथ ही उन्हें किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। यहां इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता कि वन्य जीव और वन्य जीवन के लिए पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन बेहद महत्वपूर्ण है।
जनसंख्या में बेतहाशा बढ़ोतरी, अनियंत्रित औद्योगिक विकास और शहरीकरण के कारण जहां जंगलों की बेतहाशा कटाई के चलते वन्यजीवों के आवास लगातार खत्म किये जा रहे हैं, वहीं वन्य जीवों के अस्तित्व पर ही संकट खड़ा हो गया है। यही अहम कारण हैं कि वन्यजीव भोजन की तलाश में अब मानव बस्तियों की ओर रुख करने लगे हैं। इसका दुष्परिणाम वन्यजीव-मानव संघर्ष के रूप में सामने आया है। इस संघर्ष को टालने का एकमात्र समाधान है जंगलों की कटाई पर रोक लगाना। इस पर हमें गंभीरता से विचार करना होगा कि यह संकट कुछेक वन्य जीवों का ही सवाल नहीं है, बल्कि दूसरी प्रजातियों के अस्तित्व से भी जुड़ा है। उस दशा में उन दूसरी प्रजातियों का अस्तित्व भी खतरे में पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में पारिस्थितिकीय संतुलन का बिगाड़ अवश्यंभावी है।
बीते कुछ महीनों से जंगलों और पेड़ों की अवैध कटाई का मसला विशेष रूप से चर्चा में है। इस मसले पर देश की सुप्रीम अदालत काफी गंभीर है और उसने संज्ञान लेना शुरू भी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कार्बेट रिजर्व नेशनल पार्क में अवैध निर्माण और पेड़ों की कटाई को अनुमति देने के लिए उत्तराखंड सरकार के पूर्व वन मंत्री और पूर्व प्रभागीय वन अधिकारी की खिंचाई की व फटकार लगाई। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ ने अपने आदेश में कहा कि सीबीआई इस प्रकरण की पहले ही जो जांच कर रही है, वह तीन महीने में इसकी जांच रिपोर्ट अदालत में पेश करे। पीठ ने कहा कि राज्य सरकार को भविष्य में ऐसे कारनामें रोके व पहले हो चुके नुकसान की भरपाई के लिए तत्काल कदम उठाए।
दरअसल पेड़ों की कटाई जैसे मसले पर देश की सुप्रीम अदालत की यह टिप्पणी एक सबक है। उसने कहा है कि वैधानिक प्रावधानों को ताक पर रखने जैसे पूर्व वन मंत्री और वन अधिकारी के दुस्साहस आश्चर्यचकित करने वाले हैं। यह विडंबना है कि वन अधिकारी पर गंभीर आरोप होने के बावजूद तत्कालीन वन मंत्री ने नियमों की अनदेखी कर उन्हें डीएफओ नियुक्त कर दिया। यह पूरा मामला राजनेता, नौकरशाहों की मिलीभगत का ज्वलंत उदाहरण है।
गौरतलब है कि कोर्ट की केन्द्रीय अधिकार प्राप्त समिति ने पहले सीटीआर के कालागढ़ वन प्रभाग के पाखरो और मोरघट्टी वन क्षेत्रों में 2021 में बाघ सफारी के संबंध में निर्माण सहित विभिन्न अवैध गतिविधियों के लिए पूर्व मंत्री और वनाधिकारी को जिम्मेदार ठहराया था। दरअसल, यह मामला अधिवक्ता और पर्यावरण कार्यकर्ता द्वारा दायर याचिका के चलते उजागर हुआ जिसमें पाखरो टाइगर सफारी में अवैध निर्माण के साथ-साथ अवैध रूप से हजारों पेड़ों की कटाई का आरोप लगाया था। पेड़ों की अवैध कटाई को लेकर देश में यह पहला मामला है जिसमें किसी मंत्री की संलिप्तता का खुलासा हुआ है और देश की सर्वोच्च अदालत ने संज्ञान लेते हुए गंभीर टिप्पणी करते हुए जिम्मेदार व्यक्तियों से नुकसान की भरपाई करने तथा राज्य के दोषी अधिकारियों के खिलाफ छह माह में अनुशासनात्मक कार्यवाही किये जाने का निर्देश दिया है। उस हालत में जबकि देश में विकास के नाम पर, औद्योगिक कारखानों, एक्सप्रेस-वे या ऑल वेदर रोड के नाम पर या फिर पर्यटन के नाम पर पेड़ों को, जंगलों को विकास प्रक्रिया की भेंट चढ़ाना जारी है और इनके खिलाफ जनता द्वारा किये जा रहे धरने, विरोध प्रदर्शन और जन आंदोलन सब के सब बेमानी हो गये हैं।


अब देखना यह है कि सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप का परिणाम भविष्य में क्या होगा। यदि यह सिलसिला ऐसे ही जारी रहा तो देश एक दिन हरित संपदा विहीन भी हो सकता है। पारिस्थितिकी तंत्र के असंतुलन की दशा में वन्य जीव संरक्षण के दावे बेमानी हो जायेंगे। पेड़ों के बिना लोग ऑक्सीजन के अभाव में अकाल मौत के मुंह में जाने को विवश होंगे। कोरोना काल के भयावह मंजर से भी यदि देश के नीति-नियंताओं ने सबक नहीं सीखा, तो उस दशा में क्या होगा, यह किसी से छिपा भी नहीं है।


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