सोशल इंजीनियरिंग के सहारे विपक्षी दलों को मात देने की तैयारी में बीएसपी
2007 की तरह समाजवादी पार्टी व भाजपा के कोर बैंक में सेंध लगाने का पूरा प्रयास
सभी धर्मो के प्रत्याशियों को मैदान में उतारने की तैयारी में जुटी बसपा
मेरठ।लोकसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी वर्ष 2007 की तरह सोशल इंजीनियरिंग फार्मूले को चुनाव में लाने के प्रयास में जुटी है। पार्टी इस बात पर मंथन करने में जुटी है। अन्य पार्टियों द्वारा उतारे जा रहे उम्मीदवारों के बाद अपने पत्ते खोलेगी। जिसमें सभी जातियों के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा जा सके। बसपा को निशाना सपा और और भाजपा के कोर वोट बैंक पर है। ऐसे उम्मीदवारों को चयन किया जा रहा है। जो विपक्षियों को कड़ी टक्कर दे सके।
लोकसभा चुनाव से पूर्व भाजपा ने अपने पत्ते खोले है। रालोद के साथ गंठबधन करने के बाद 51 उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है। उसमें वेस्ट की कुछ सीटों पर अभी असमजंस की स्थिति बनी हुई है। सपा व कांग्रेस ने अभी पत्ते नहीं खोले है। बसपा इन्हीं दोनो दलों का इंतजार करने में जुटी है। बदले राजनीतिक समीकरण के दृष्टिगत बहुजन समाज पार्टी ने भी रणनीति तैयार कर ली है। इन दोनों दलों के जातीय समीकरण की काट के लिए बसपा सोशल इंजीनियरिंग के बूते चुनावी मैदान में ताल ठोकने के मूड में है। बसपा ने साल 2007 के विधानसभा चुनाव में सोशल इंजीनियरिंग के जरिए अप्रत्याशित रूप से सत्ता हासिल कर ली थी। बसपा हाईकमान नए सिरे से रणनीति बना रहा है। बसपा सुप्रीमो मायावती भी काफी गंभीर हैं। बसपा अपने पुराने एजेंडे पर लौटकर फिर से सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से लोकसभा चुनाव 2024 में आने की तैयारी कर रही है। बसपा एक सप्ताह के भीतर लोकसभा के कुछ प्रत्याशियों के नामों की घोषणा कर सकती है। पश्चिम उप्र के मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, बागपत, बिजनौर, कैराना आदि लोकसभा सीटों पर प्रत्याशियों के चयन पर सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला अपनाया जा रहा है।बसपा की सोशल इंजीनियरिंग से हर दल बखूबी जानता है। सूत्रों की मानें तो चुनाव आचार संहिता लागू होते ही राजनीतिक हलके से चौंकाने वाली खबर आ सकती है। दरअसल बसपा मुजफ्फनगर से सैनी व ठाकुर को बागपत से गुर्जर या मुस्लिम को कैराना से कश्यप व जाट को ,बिजनौर से गुर्जर समाज के प्रत्याशी को उतारने की तैयारी में बसपा जुटी है। बिजनौर से ठाकुर समाज के मैदान में उतारने के कयास लगाए जा रहे है। मेरठ-हापुड़ लोकसभा सीट से किसी मुस्लिम को मैदान में उतारने की तैयारी करने में जुटी है। इसका सबसे बड़ा कारण है। बसपा के टिकट से शाहिद अखलाख सांसद व मेयर रह चुके है। बसपा से याकुब कुरैशी बतौर विधायक रहे चुके है।वर्ष 2019 के चुनाव में याकुब कुरैशी मात्र 4709 वोटों से भाजपा के राजेन्द्र अग्रवाल से हारे थे। जहां तक जातीय समीकरण की बात करें तो मेरठ -हापुड़ सीट पर दलित ,मुस्लिम , पिछडों की संख्या काफी अधिक है। दलित मुस्लिम की साढ़े आठ लाख वोटहै। चुनाव में इतने वोट किसी भी दल के लिए हार जीत साबित हो सकते है। बसपा बस इस समीकरण ध्यान में रखकर मुस्लिम प्रत्याशी को मैदान में उतारने का प्रयास कर रही है।
एक सप्ताह में बसपा के प्रत्याशी की सूची जारी होने के बाद पता चल पाएगा कि किस प्रत्याशी का कितना पलड़ा भारी है। इस बात का पता तो लोकसभा चुनाव के होने के बाद ही चल पाएंगा । कौन किस पर भारी पड़ता है। लेकिन इतना तय है कि बसपा पर विपक्षियों की पैनी नजर है।
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