पुस्तक समीक्षा


हिंदी साहित्य में एक अनूठा प्रयोग : 'पत्रकारिता में प्रतिक्रिया' :- श्याम निर्मोही

हमारे दिन की शुरुआत अखबार के साथ होती है। हम अखबार में स्थानीय खबरों से लेकर के राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खबरों तक को कभी गौर से तो कभी सरसरी नज़र से पढ़ कर अपनी दिनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं। 

कभी-कभी फ़ुर्सत मिलती है तो संपादकीय पृष्ठ पर भी हमारी नज़र जाती है। जिस पर हमें देश के समसामयिक मुद्दों से संबंधित खबरें पढ़ने को मिलती है और हम पढ़ करके आगे बढ़ जाते हैं। पढ़ने के बाद में कई विचार आते-जाते हैं लेकिन हम उनको प्रतिक्रियात्मक रूप से व्यक्त नहीं कर पाते हैं। बहुत विरले होते हैं वे लोग जो उस पर पढ़ने के बाद में चिंतन, मंथन के बाद गंभीरतापूर्वक अपनी प्रतिक्रिया दे पाते हैं और ऐसा किया है - डॉ.जसवंत सिंह जनमेजय जी ने। एक-दो दिन नहीं, एक या दो बार नहीं बल्कि दो दशकों तक विभिन्न अख़बार और पत्र-पत्रिकाओं का गंभीरता से अध्ययन करने के बाद उस पर 'पाठक की कलम से' कॉलम में अपनी प्रतिक्रियाओं से पत्रकारिता को सींचते रहे, समृद्ध करते रहे। 

जनमेजय जी के ऐसे ही प्रतिक्रिया स्वरूप उपजे विचारों को एकत्र करके एक मुकम्मल पुस्तक 'पत्रकारिता में प्रतिक्रिया' के रूप में अपने संपादन से एक मुकम्मल आकार दिया है डॉ. ममता देवी ने।

हालांकि यह पुस्तक मुझे अक्टूबर में ही मिल गई लेकिन समयाभाव के कारण कोई प्रतिक्रिया नहीं दे पाया। मेरा मानना है कि जब भी कोई अपनी पुस्तक भेजता है तो बड़े मन से पुस्तक भेजता है। पढ़ने के बाद 'चाहे संक्षिप्त शब्दों में ही दें' उस पर प्रतिक्रिया जरूर देनी चाहिए। सच कहूॅं-मैं मूलरूप से कोई समीक्षक या आलोचक नहीं हूॅं परंतु पढ़ने के बाद देर-सवेर प्रतिक्रिया देना अपना दायित्व समझता हूॅं। 

पुस्तक की अनुक्रमिका को चार खंडों में बांटा गया है :-

खंड-1: सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संदर्भ

खंड-2: कला, साहित्य और सांस्कृतिक संदर्भ

खंड-3: बुद्ध-अंबेडकर दलित प्रसंग

खंड-4: विविध प्रसंग 

मेरा मानना है कि इन सभी विषयों की प्रतिक्रियाओं से गुजरते हुए, आप भी प्रतिक्रिया पर प्रतिक्रिया देने के लिए विवश हो उठेंगे।

खंड-1: सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक संदर्भ में चाहे वो सरकार से सवाल करने के लिए प्रतिक्रियात्मक प्रश्न हो या परीक्षा के समय चुनाव कराने को लेकर सुझाव हो । तत्कालीन समय में उठ रहा विदेशी मूल का मुद्दा हो। 

सब पर अपनी बेबाक राय और पैनी कलम की धार से प्रतिक्रिया देकर के जनमजेय जी ने पत्रकारिता के चौथे स्तंभ को जीवंत रखने का माद्दा बनाए रखा हैं।

खंड-2: कला, साहित्य और सांस्कृतिक संदर्भ में वन्देमातरम् की महत्ता:- 90 के दशक में जब ए.आर.रहमान के द्वारा गाया गया -'वंदे मातरम्' गीत आया तो इस गीत को लेकर एक बहस छिड़ गई थी क्या इस गाने के मूल स्वरूप के साथ इस प्रकार से छेड़छाड़ करना उचित है या नहीं है ? इस पर भी अपनी राय जनमेजय जी ने गंभीरतापूर्वक रखीं है।

सौ पुत्र होने का डर, सरकारी फाइल के पहिए, महिला के विकास को अबला ही पूरा करेगी, भारतीय नारियों की प्रणेता क्रांति ज्योति सावित्री बाई फुले, मोबाइल के विकास से हिंदी का ह्रास जैसे कई गंभीर प्रतिक्रियात्मक लेख जो हमें मंथन को विवश करते हैं।

खंड-3: बुद्ध-अंबेडकर दलित प्रसंग में 'दलितों की हत्या' शीर्षक से प्रतिक्रियात्मक लेख में लेखक चिंता करता है कि भारत में गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर दलितों की हत्याऍं क्यों ? याद रहे इस घटना में सवर्णों ने 21 दलितों को गोलियों से भून दिया था और बाद में तत्कालीन सरकार द्वारा मरने वाले वालों के आश्रितों के लिए एक-एक लाख रुपए की सहायता राशि मंजूर की। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि क्या एक मनुष्य की कीमत एक लाख रुपए हैं ?  

एक अन्य लेख 'क्रांतिकारी वाणी' जब संत कबीर साहेब की 600वीं जयंती मनाई जा रही थी तब अखनूर क्षेत्र में कबीर पंथियों पर हमला किया गया। 

पहले जाति प्रथा तोड़ो तथा भीमराव अंबेडकर की मूर्तियों को तोड़ने की घटनाओं पर भी लेखक कलम से अपना विरोध दर्ज करवाते हैं।

'संविधान समीक्षा क्यों' वर्तमान में भी चर्चा में है और इस पर 1998 में लेखक ने लिख डाला। एक महत्वपूर्ण लेख 'बड़ा बाबा भीमराव और छोटा बाबा कांशीराम' पठनीय और काफी महत्वपूर्ण हैं।

खंड-4: विविध प्रसंग में 'स्वदेशी को झटका', 'किसके लिए रिजर्वेशन', किसानों की उपेक्षा, भारतीय डाक: सदियों का सफ़रनामा, गैर जिम्मेदार युवा, सत्ता पर संगठन हावी जैसे कई लेख है जिनकी प्रासंगिकता आज़ भी बनी हुईं हैं। 

अलग-अलग विषयों से संबंधित प्रतिक्रियात्मक लेखों का संकलन करना और उन्हें फिर एक सूत्र में पिरोना वाक़ई में डॉ. ममता देवी की प्रतिभा का अनूठा परिचय है।

विभिन्न विषयों एवं मुद्दों पर दी गई प्रतिक्रियाऍं महज़ प्रतिक्रियाऍं ही नहीं है बल्कि एक-एक पृष्ठ अपने आप में एक ठोस दस्तावेज़ हैं।

सच में जनमेजय जी का यह अनूठा प्रयास नई पीढ़ी के रचनाकारों को एक नई राह दिखाने में समर्थ हैं। आपकी रचना-धर्मिता बनी रहे। लेखक और संपादक दोनों बधाई के पात्र हैं। साधुवाद !

समीक्षक 

श्याम निर्मोही 

बीकानेर, राजस्थान।

पुस्तक:- पत्रकारिता में प्रतिक्रिया

लेखक:- डॉ. जसवंतसिंह जनमेजय।

संपादन:- डॉ.ममता देवी।

प्रकाशक:- स्वराज प्रकाशन नई दिल्ली।

मूल्य:- ₹395, पृष्ठ संख्या:- 164

प्रथम संस्करण:- 2023

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