चुनावी बांड ने फोड़ा भांडा

इलमा अजीम 
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड के मामले में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सारे पैंतरे व्यर्थ कर दिए। इसके साथ ही इस पूरे मामले से चंदा लेने वाले राजनीतिक दलों की नीयत से भी पर्दा उठ गया। सुप्रीम कोर्ट के भय से एसबीआई द्वारा किए गए खुलासे से जाहिर हो गया है कि जिस भी राजनीतिक दल का जोर चला उसने उसी हिसाब से उद्योगपतियों और व्यवसायियों से चंदा वसूल किया है। यह तो निश्चित है कि कोई उद्यमी मुफ्त में कुछ नहीं देता। चंदा देने के दो ही तरीके हैं। पहला यह कि राजनीतिक दलों के डर के मारे देना पड़े और दूसरा ऐसा करने से निहित स्वार्थ साधे जा सकते हैं। किन्तु सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सार्वजनिक करवा कर सबको हमाम में नंगा कर दिया। इससे जाहिर हो गया कि दूध का धुला कोई राजनीतिक दल नहीं हैं। जिस राजनीतिक दल की जितनी हैसियत है, उसने उसी हिसाब से चुनावी चंदा वसूला है। यही वजह है कि क्षेत्रीय दलों को कम और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को सर्वाधिक चंदा मिला है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट की इस पूरी कवायद में उद्यमी दो पाटों के बीच फंस गए हैं। उद्यमी कभी यह नहीं चाहते थे कि उनके चंदा देने का खुलासा हो। खुलासा होने के बाद उनके साथ कम चंदा मिलने या नहीं मिलने पर राजनीतिक दल बदले की भावना से काम करे बिना नहीं मानेंगे। ऐसे में उद्यमी चंदा देकर मुसीबत मोल ले बैठे। यदि उद्यमी सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय एजेंसियों से बच गए तो राज्यों में सत्तारूढ़ गैर भाजपा दलों की राज्यों की एजेंसियों की लपेटे में आ सकते हैं। चुनावी बांड की योजना लागू होने के बाद इसके माध्यम से सबसे अधिक 6986.5 करोड़ रुपए की धनराशि भाजपा को प्राप्त हुई। इसके बाद तृणमूल कांग्रेस को 1397 करोड़ रुपए, कांग्रेस को 1334 करोड़ रुपए और बीआरएस को 1322 करोड़ रुपए मिले। चुनावी बॉन्ड से सबसे ज्यादा दान पाने वालों की पार्टियों में तृणमूल दूसरे, कांग्रेस तीसरे और बीआरएस चौथे नंबर की पार्टी है। यदि सुप्रीम कोर्ट एसबीआई को इसका खुलासा करने पर मजबूर नहीं करता तो इस गठजोड़ का खुलासा कभी नहीं हो पाता। यदि भ्रष्टाचार को खत्म करना है तो हर स्तर पर किया लेन-देन सार्वजनिक किया जाना चाहिए।

No comments:

Post a Comment

Popular Posts