आकर्षक पैकेज में रोगवर्धक प्रोसेस्ड फूड

- देविंदर शर्मा
जब भी मैंने कृषि उपज के लिए गारंटीशुदा कीमत का सवाल उठाया, ट्रोल के एक वर्ग ने हमेशा मुझे यह कहते हुए घेर लिया कि उपभोक्ता को खराब गुणवत्ता वाले कृषि उत्पादों के लिए भुगतान क्यों करना चाहिए। बड़े पैमाने पर शहरी आबादी में किसानों के प्रति अंतर्निहित दुराग्रह के अलावा, शायद वे जिस मुद्दे को उठाने की कोशिश कर रहे हैं वह यह है कि सारी कृषि उपज समान गुणवत्ता वाली नहीं होती है जो न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीदे जाने के काबिल हों।
दरअसल, वे यह नहीं जानते कि एमएसपी की डिलीवरी भी किसानों की उपज की गुणवत्ता पर आधारित है। उदाहरण के लिए, बेहतरीन चावल की कीमत सामान्य किस्मों की तुलना में अधिक है। इसी तरह चीनी की हाई रिकवरी वाले गन्ने के लिए, चीनी मिलें तुलनात्मक रूप से अधिक रेट देती हैं। यहां तक कि ए-ग्रेड के अंडों की कीमत भी सामान्य ग्रेड वालों से अधिक है। इसके लिए अभी भी और अधिक किया जा सकता है, लेकिन कम से कम यह उतना मामूली नहीं है जितना शहरी शिक्षित लोग हमें विश्वास दिलाना चाहते हैं।
फिर भी, जो लोग किसानों को सही कीमतों से वंचित करने के लिए बार-बार कृषि उपज की क्वालिटी की बात करते हैं, वे ही लोग हैं जिन्हें खराब गुणवत्ता के लिए भुगतान करने के लिए खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों द्वारा धोखा दिया जाता है। वास्तव में, वे निम्न गुणवत्ता वाले उत्पाद बहुत ज्यादा कीमत पर खरीदते हैं, जो प्राथमिक उत्पादक को उनके द्वारा भुगतान की गई कीमत से कई गुणा अधिक होता है। केवल इसलिए कि प्रोसेस्ड फूड आकर्षक पैकेज में आता है, शायद कोई फिल्म स्टार या क्रिकेटर उस उत्पाद का विज्ञापन भी करता है, इसका मतलब यह नहीं है कि उपभोक्ता जो खरीदता है वह गुणवत्ता मानकों पर खरा उतरता है। यह वास्तव में बहुत बुरी बात है। औसत उपभोक्ता, जो स्वास्थ्यवर्द्धक प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की तलाश में मॉल्स या सुपरमार्केट में जाता है, यह अनुभव करने में नाकाम रहता है कि प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स में से अधिकांश जो अलमारियों में लाइनों में सजा है – एक सुपर मार्केट स्टोर में लगभग 40,000 ऐसे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ हैं- वे अंततः जो खरीदते हैं वह सेहत को नुकसान पहुंचाने वाला है। अगर मुझे खराब क्वालिटी का कहने की अनुमति दी जाए तो यह अक्सर समाज में होने वाली अधिकांश बीमारियों की जड़ है। जैसा कि मैंने अक्सर कहा है कि यदि बतौर विक्रेता आप जहर को आकर्षक पैकेजिंग के साथ पेश करना जानते हैं तो संभावना है कि उपभोक्ता इसे खरीदने के लिए इच्छुक मिलें!
एक आंखें खोलने वाला अध्ययन जो ओपन-एक्सेस ट्रांसडिसिप्लिनरी जर्नल, ग्लोबलाइजेशन एंड हेल्थ में 1 दिसंबर, 2023 को प्रकाशित हुआ, मैं चाहता हूं कि हर उपभोक्ता इसे पढ़े। उस अध्ययन के तहत लॉरेन एट अल ने यह पता लगाने के लिए एक पद्धति विकसित की है कि प्रसंस्कृत भोजन और पेय की बिक्री की कितनी मात्रा सेहत के लिए फायदेमंद की श्रेणी में आती है और कितनी अस्वास्थ्यकर की कैटेगरी में। उन्होंने शीर्ष 20 वैश्विक खाद्य दिग्गज कंपनियों द्वारा निर्मित 1,294 ब्रांडों के 35,550 उत्पाद चुने। ये कंपनियां सात देशों- अमेरिका, ब्रिटेन, चीन, भारत, ब्राज़ील, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया से ली गई थीं- और आम तौर पर कोई भी यह मानेगा कि इन देशों की बेचे जा रहे प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता पर पैनी नज़र होगी।
साल 2022 में इन 20 बड़ी खाद्य कंपनियों की रिटेल सेल 7.7 अरब डॉलर से अधिक हो गई। मुझे यकीन है कि जो कुछ सामने आया उसे जानकर आप हैरान रह जाएंगे। लगभग 89 प्रतिशत बिक्री को अस्वास्थ्यकर श्रेणी में रखा गया। हैरानी होती है कि गुणवत्ता के प्रति जागरूक आबादी के उसी वर्ग का क्या होता है जिसकी एक किसान द्वारा अपनी उपज बेचने पर तो भौंहें तन जाती हैं, लेकिन खुशी-खुशी सुपर मार्केट से अस्वास्थ्यकर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ खरीद लेते हैं। शायद यह आकर्षक पैकेजिंग की चकाचौंध ही है जो उन्हें खरीदने के लिए धोखा देती है, उन्हें यह अहसास नहीं होता कि हर चमकती चीज सोना नहीं होती। अधिकतर अस्वास्थ्यकर बिक्री प्रोसेस किये गये खाद्य उत्पादों, शीतल पेय, कन्फैक्शनरी और स्नैक्स से संबंधित थी। उदाहरण के लिए मॉडलेज़, मार्स और पेप्सिको की 5 प्रतिशत से भी कम बिक्री सेहत के लिए सही खाद्य पदार्थों की श्रेणी में आती है, जबकि रेड बुल और फ़रेरो की कोई भी बिक्री बिल्कुल भी स्वास्थ्यकर नहीं थी। अध्ययन के मुताबिक, तुलनात्मक रूप से बेहतर कार्य करने वाली कंपनियों में ग्रुपो बिंबो (42 फीसदी), डैनोन (34 फीसदी) और कोनैग्रा (32 फीसदी) शामिल थीं हालांकि उनकी सेल का भी अधिकतर हिस्सा अस्वास्थ्यकर खाद्य पदार्थों से लिया गया था।
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार भारत में 74 प्रतिशत आबादी स्वास्थ्यवर्धक आहार का खर्च वहन करने में असमर्थ है, और यह भी माना जाता है कि जो लोग सेहतमंद आहार का खर्च उठा सकते हैं, वे स्वास्थ्यकर भोजन नहीं कर रहे हैं, ऐसे में मुझे आश्चर्य होता है कि भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) क्या कार्य करता है जब देश में बिकने वाले प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता इतनी खराब है। इसका मतलब यह भी है कि एक परिवार जो अस्वास्थ्यकर भोजन खा रहा है वह असल में थाली तक पहुंचने वाले अस्वास्थ्यकर प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का परिणाम है।
फैसले लेने की उस प्रक्रिया में पैदा हो रहे हितों के टकराव की समस्त चर्चा के बावजूद, जिसका मकसद सुरक्षित और स्वास्थ्यवर्धक खाद्य पदार्थ यकीनी बनाना है, वैश्विक स्तर पर भोजन का कार्पोरेट औपनिवेशीकरण हो रहा है। जिसके चलते कुछेक कृषि-व्यवसाय समूहों के हाथों में शक्ति सिमटती जा रही है। साल 2021 संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन, उसके उपरांत कोका-कोला के प्रायोजन के अंतर्गत सीओपी 27 और तेल कंपनियों द्वारा सीओपी 28, एक ऐसी दिशा की ओर इशारा करता है जो स्वयं अस्वस्थ है। यह मुझे एक अन्य संबद्ध प्रश्न पर लाता है। जब भी भारत में किसानों को ज्यादा कीमतें देने की बात होती है, तो मुझे तुरंत जवाब मिलता है कि फूड प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने की जरूरत है। उदाहरण के तौर पर खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय को पीएम-किसान संपदा योजना के तहत मार्च 2026 की अवधि तक 4600 करोड़ रुपये आवंटित किये जा चुके हैं, जो प्रमुखतया एग्रो प्रोसेसिंग समूहों के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण, कोल्ड चेन व मूल्य संवर्द्धन ढांचे से जोड़ने के मकसद को लेकर है।
खाद्य प्रसंस्करण पर जोर ऐसे समय में दिया जा रहा है जब विश्व स्तर पर अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और कैंसर समेत हानिकारक बीमारियों के बीच संबंध पर गंभीर चिंताएं जतायी जा रही हैं। साल 2018 के फ्रेंच न्यूट्रीनेट-सांटे कॉहोर्ट अध्ययन से पता चला है कि हमारे आहार में अल्ट्रा-प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों में 10 प्रतिशत की वृद्धि स्तन और प्रोस्टेट कैंसर सहित समग्र कैंसर भार में 10 प्रतिशत की वृद्धि की संभावना पैदा करने के लिए काफी है। लेकिन फिर भी, जब भी मुझे अग्रसर कृषि प्रसंस्करण उद्योग की संभावनाओं पर चर्चा करने वाले सम्मेलन में आमंत्रित किया गया- अति-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों पर कभी कोई सत्र नहीं हुआ। वास्तव में, यह कहना गलत नहीं होगा कि जो अर्थशास्त्री व अन्य लोग फूड प्रोसेसिंग की चर्चा करते हैं उन्हें बढ़ रहे कैंसर मामलों से इसके संबंध का कम ही पता होगा।



‘एनवायरनमेंट हेल्थ प्रस्पेक्टिव्स’ के जनवरी 2024 अंक में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन के जरिये ब्रेस्ट कैंसर से संबंधित 921 केमिकल की पहचान की गयी है। इन केमिकल्स में से 90 प्रतिशत से अधिक रसायन खाद्य और पेय पदार्थों, कीटनाशकों जिनमें घरेलू कीट नियंत्रण शामिल है, के अलावा त्वचा और बालों की देखभाल उत्पादों में पाए जाते हैं।
मैंने पहले बात की थी कि 89 प्रतिशत प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और पेय पदार्थ गैर सेहतमंद हैं, उसके साथ तालमेल बिठाते हुए, यह स्पष्ट रूप से हमें बताता है कि प्रसंस्करण उद्योग तो जमकर मुनाफा कमा रहा है, लेकिन भोले-भाले उपभोक्ता ही हैं जो अंततः भारी कीमत चुकाते हैं। अक्सर घातक।

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