मिटे अमीरी-गरीबी का अंतर
 इलमा अजीम 
वैश्विक जनसंख्या का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने के लिए विवश है और विश्व की आर्थिक प्रगति का कोई लाभ उसे नहीं मिल रहा है। विश्व में बढ़ती आर्थिक असमानता के कारण कई प्रकार की सामाजिक और आर्थिक विसंगतियां उत्पन्न हो रही हैं। अमीर और गरीब के बीच बढ़ती खाई आज एक वैश्विक सत्य है। विश्व बैंक के अनुसार किसी को उसके कल्याण से वंचित रखना भी गरीबी का ही एक रूप है। इसमें कम आय और आत्मसम्मान से जीने के लिए मूलभूत सेवाओं को ग्रहण करने की अक्षमता शामिल होती है। स्तरहीन शिक्षा और स्वास्थ्य, स्वच्छ जल और साफ-सफाई की अनुपलब्धता तथा अभिव्यक्ति का अभाव भी निर्धनता के स्पष्ट लक्षण होते हैं। भारत में नीति आयोग के विरोधाभासी आंकड़े बताते हैं कि देश की 31 फीसदी आबादी के पास टॉयलेट नहीं हैं। देश के हर नागरिक को अपना घर और स्वच्छता के लिए शौचालय बनाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्त्वाकांक्षी प्रधानमंत्री आवास योजना पिछले 10 सालों से चल रही है। लेकिन अभी भी देश में 41.3 फीसदी लोगों के पास अपना मकान नहीं है, जबकि 31 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिनके पास टॉयलेट नहीं हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश में 44 फीसदी लोग आज भी बिना रसोई गैस कनेक्शन के जीवनयापन कर रहे हैं। इसमें बिहार में सबसे ज्यादा गरीबी और केरल में सबसे कम बताई गई है।प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना, उज्ज्वला योजना, सभी घरों में बिजली के लिए सौभाग्य योजना, जल जीवन मिशन व जन-धन खाते की सुविधा जैसी योजनाओं से भी लोगों को गरीबी से ऊपर लाने में मदद मिली है।  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2047 तक भारत को विकसित देश बनाने का लक्ष्य रखा है। प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से भारत का दुनिया में 139वां स्थान है। ब्रिक्स और जी-20 देशों में भारत सबसे गरीब है। भारत को 2047 तक विकसित देश बनने के लिए अगले 23-24 साल तक विकास दर को 7.7 फीसदी की रफ्तार से बढऩा होगा। इसलिए वर्तमान संदर्भ में यह अनिवार्य हो गया है कि अमीर और गरीब के बीच की खाई को पाटा जाए।

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